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[ कल्याण - कलिका
होय छे. ब्राह्मणादि वर्णोने अनुसारे केवा प्रकारनी भूमि ग्राह्य अने har प्रकारनी भूमि अग्राह्य होय छे, एनुं शास्त्रोमा विस्तृत वर्णन छे. जेनो सार आ प्रमाणे छे.
(१) श्वेत, घृतगंधी अने मधुररसवाली भूमि ब्राह्मण वर्णने निवास योग्य होय छे.
(२) राती, लोहित गंधी अने कषायरसवाली भूमि क्षत्रिय वर्णने निवास योग्य गणाय छे.
(३) पीळी, तीखा स्वादवाली अने अन्नगंधी भूमि वैश्यने निवास योग्य होय छे.
(४) काली, कडवी, निर्गन्धा, अथवा मत्स्यगन्धी भूमि शूद्र वर्णने निवास योग्य गणाय छे.
वर्णोचित भूमिपरीक्षाना अन्य प्रकारो
परीक्षणीय भूमिमां एक हाथ समचोरस ऊंडो खाडो खोदी तेमां माटीनो काचो घडो मूकवो, घडामां चावलजव आदि धान्य भर, ते उपर माटीनुं काचुं शरावलुं घृतथी भरीने मूकवुं, तेमां धोली, राती, पीली तथा काली ए ४ वाटो, उत्तर, पूर्व, दक्षिण अने पश्चिम संमुख मूकीने संध्या समयमां ते चेतावी दीपक प्रकटाववा, पवन वधारे ओछो न लागे ते माटे आडी त्राटी ऊभी करवी. दीपक बळे त्यां सुधी त्यां ऊभा रही जोवुं. घृत रहे त्यां सुधी चार वाटो बळती रहे तो ते भूमि चारे वर्णने योग्य छे एम जाणवुं अने घी होवा छत उत्तरादि जे दिशानो दीपक बूझाय ते दिशानां वर्णवालाने ते भूमि योग्य नथी, एम जाणवुं. उत्तर दिशाथी ब्राह्मणादि वर्णो अनुक्रमे समजवाना छे.
२ परीक्षणीय भूमिमां उपर जणाव्यो तेत्रो खाडो खोदीने तेमां धोळां, रातां, पीळां अने श्यामरंगनां पुष्पो सांजे वेरवां अने सवारमां
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