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________________ प्रथम-खण्डः ] प्रतिष्ठाकल्प आजे अवश्य उपलब्ध थाय छे. छतां ए प्रतिष्ठाकल्पमां पण केलांक विधिविधानो एक बीजामां प्रविष्ट थइने सम्बन्धविहीन थइ गयां छे. वली आ ' प्रतिष्ठाकल्प' बीजी पण घणी अशुद्धिओवालो थइ जवाथी विधिज्ञ विद्वानोनुं एमां मन लागतुं नथी. तेथी तेओ आ विषयनी स्पष्ट विधिपरम्परानी मांगणी करे छे. आ मांगणीना कारणोनी वास्तविकतानुं मनन करीने प्रतिष्ठापद्धतिविषयक प्राचीन परम्पराना ज्ञानपूर्वक पं. कल्याणविजय द्वारा आ नव्य प्रतिष्ठापद्धतिनुं निर्माण कराय छे. ग्रन्थस्वरूपनिर्देश: आयो लक्षणखण्डच, विधिखण्डो द्वितीयकः । साधनाssख्यस्तृतीयश्च, कलिकायां प्रकल्पितः ॥ ११॥ आधे सप्तदशच्छेदा, द्वितीये चैकविंशतिः । अन्त्ये खण्डे परिच्छेदाः, पञ्चैव परिकीर्तिताः ॥१२॥ भा०टी० - कल्याणकलिकामां त्रण खंडोनी कल्पना करेली छे. पहेलो लक्षणखंड, बीजो विधिखंड अने त्रीजो साधनखंड. पहेला लक्षणखंडमां १७ परिच्छेद, बीजा विधिखंडमां २१ परिच्छेद अने त्रीजा साधनखंडमां ५ परिच्छेदो पाडेला छे. प्रथमखण्डपरिच्छेदसूची ૧ भूमि-लक्षणमस्थ्यादि-लक्षणं दिग्विशोधनम् । ४ ૬ चतुर्थे कीलिका-सूत्र-लक्षणं परिकीर्तितम् ॥१३॥ कूर्म - तच्छिलयोर्लक्ष्म, शिलानां लक्षणं तथा । वास्तुममेपमर्मादि-लक्षणं वास्तुमण्डलम् ||१४|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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