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ज्योतिष लक्षणे-प्रतिष्ठालन]
लग्नकुंडलीनी उत्तम मध्यम ग्रहस्थिति ज नवमांशनी पण जाणवी जोइये, ए उपरान्त नवमांशमां वर्गशुद्धि पण अवश्य जोषी अने जे नवमांशमां षड्वर्ग, पंचवर्ग अथवा चतुर्वर्ग शुद्धि अने पृथ्वी अथवा जल तत्व चालतुं होय एवो नवमांश अगर तेनो भाग जोइने तेवा समयमां अधिवासना अने प्रतिष्ठा करवी. ए संबन्धमां का छेद्वयोर्नवांशयोः शुद्धिः, प्रतिष्ठायां विलोकयेत् । आद्येऽधिवासना बिम्बे, द्वितीये च शलाकिका ॥७९७
भा०टी०-प्रतिष्ठामां बे नवमांशोनी शुद्धि जोवाय छे, प्रथमशुद्धनवमांशमां बिम्बनी अधिवासना अने बीजामा प्रतिमाने अंजनशलाका कराय छे.
कया लग्नमां कयो नवमांश अथवा नवमांशो, षड्वर्ग, पञ्चवर्ग वा चतुर्वर्ग शुद्ध होय छे ते नीचेनी गाथाओथी जाणी शकाशेसत्तमनवमा मेसे १, पंचमतझ्याविसे २ मिहुणि छठो ३ । पढमतइआय कक्के ४, सिंहे छट्ठो ५ कन्नित इओ६पी॥७९८। अट्ठम नवमा य तुले ७, विच्छियलग्गे चउत्थयनवंसो ८ । धणुलग्गि छ? सत्तम-नवमा मयरंमि पंचमओ ॥७९०॥ छट्टमा य कुंभे, ११, पढ़मो तइयो अमीणलग्गम्मि । चउपणवग्ग छवग्गे, एएसु नवंस एसु सुहो । ८००॥ ___ भा०टी०-मेष लग्नमां सातमो नवमो, वृषमां त्रीजो पांचमो, मिथुनमा छट्ठो, कर्कमा पहेलो त्रीजो, सिंहमां छट्ठो, कन्यामां श्रीजो, तुलामां आठमो नवमो, वृश्चिकमां चोथो, धनुमां छट्टो सातमो नवमो, मकरमां पांचमो, कुंभमा छटो आठमो अने मीनमा पहेलो त्रीजो नवमांश शुभ होय छे, उक्त नवमांशोमा कोइ चतुर्वर्ग, कोह पंचवर्ग अने कोइ षड्वर्ग शुद्ध होय छे.
अहीयां अमो पञ्चवर्ग तथा षड्वर्ग शुद्ध नवमांशोनुं तत्वोनी साथे समयपूर्वक स्पष्टीकरण आपशुं के जे कोष्टक उपरथी ज्योतिषीओ विना कष्टे शुद्ध नवमांश जाणी शके
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