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________________ ५७४ [कल्याणकलिका-प्रथमखण्डे वैशाखे श्रावणे मार्गे, पौषे फाल्गुन एव च । कुर्वीत वास्तु प्रारम्भ, न तु शेषेषु सप्तसु ॥७१४॥ भा०टी०-वैशाख श्रावण मार्गशीर्ष पौष अने फाल्गुन अपांचचान्द्रमासोमां वास्तुकर्मनो आरंभ करवो, बाकीना सात महीनाओमां न करवो। वास्त्वारंभना सौरमासोधरमारभेन्नोत्तरदक्षिणास्य, तुलालिमेषर्षभभाजि भानौ । प्राक्पश्चिमास्यं मृग कुंभ कर्क सिंह स्थिते द्वयंगगते न किश्चित् ॥७१५।। भा०टी०-मेष वृषभ तुला वृश्चिक राशिना सूर्यमा उत्तर द्वार तथा दक्षिण द्वारना घर अथवा प्रासादनो कार्यारंभ न करवो, अज रीते मकर कुंभ कर्क सिंह राशिनो सूर्य होय त्यारे पूर्व-पश्चिममुख घरके प्रासादनो आरंभ न करवो, अने मिथुन कन्या धन मीन आ ४ द्विस्वभावराशिना सूर्यमां कोइ वास्तुनो आरंभ करवो नहि. ए विषे ज्योतिस्तत्त्वकार कहे छेपूर्वापरास्यं तु नभोऽन्त्यपौषे, याम्योत्तरास्यं सहसि-द्वितीये । कार्य गृहं जीवधुधर्भगार्क, नीचास्तगौ जीवसितौच हित्वा ।।७१६॥ भाण्टी०-पूर्व मुख पश्चिममुख गृह श्रावण पौषमें अथवा फाल्गुनमासमां आरंभq अने दक्षिण-उत्तर मुख गृह मार्गशीर्ष वा वै. शाखमां करवू, धन मीन मिथुन कन्याना सूर्यमां गृहारंभ करवो नहाँ, गुरू-शुक्र नीचना होय वा अस्त होय तो गृहारंभमां वर्जवा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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