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लग्न-लक्षणम् ]
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ए पछी टीकाकार दैवज्ञ गोविंद ' अन्यत्रापि ' आवा उल्लेख साथै कोइ श्रीजा ग्रन्थना " भूपञ्चनन्दा " इत्यादि त्रण पद्यो उद्धरे छे जे पैकीना प्रथम पद्यनां ३ चरणोमां मेषादि १२ राशिओना घातचंद्रनो उल्लेख छे अने चोथा चरणमां-
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यात्रासु युद्धेषु च घातचन्द्रः
-आ प्रमाणे घातचन्द्रनो विषय निर्देश्यो छे के-घातचंद्र यात्राओ ने युद्धोमां जोवानो छे, टीकाकारे आपला अत्रण पद्यो पैकीना छेल्ला बे श्लोको नीचे प्रमाणे छे
युद्धे चैव विवादे च, कुमारीपूजने तथा । राजसेवा वाहनादौ, घातचन्द्रं विवर्जयेत् ॥७०८|| तीर्थयात्रा - विवाहान्न - प्राशनोपनयादिषु । सर्वमांगल्यकार्येषु, घातचन्द्रं न चिन्तयेत् ॥७०९ ॥
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भा०टी० - युद्ध, विवाद कुमारिकापूजन राजसेवा अने वाहनारोहण आदिमां घातचंद्र वर्जवो, तीर्थयात्रा, विवाह, अन्नप्राशन, उपनयन आदिकमां तथा सर्वप्रकारना मांगलिक कार्योंमां घातचन्द्र जोवानी जरूरत नथी,
ए पछी गोविंद ज्योतिर्विद् घातचन्द्र विषयक पोताना एक पधनुं अवतरण आपी टीकाना अंतमां कहे छे" एतदपि निर्मूलम् |" अर्थात् आ घातचन्द्र प्रकरण पण निर्मूल एटले आधार विनानुं छे, अर्थात् आने कोइ मौलिक सिद्धान्त ग्रन्थनो आधार नथी.
घातचंन्द्र, घाततिथि, घातवार, घातनक्षत्रनुं निरूपण करीने टीकाकार गोविंद घातनक्षत्र विषयक श्लोकनी टीकाना अन्तमा लखे छे -" तदेते दोषा दाक्षिणान्त्यप्रसिद्धा निर्मुलाः ॥ " अर्थात् उपर कल चंद्र, तिथि, वार, नक्षत्रघातना दोषो दाक्षिणात्यदेशमां प्रसिद्ध छे अने निर्मूल - निराधार छे,
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