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[ कल्याणकलिका-प्रथमखण्डे देखतो होय तो ते शुभदायक नथी अने लग्न चंद्रथी राहु सातमो शुभ नथी. उदाहरण रूपे शनि राशिना वीसमा त्रिंशांशमां के अने लग्न अथवा चंद्र राशिना अष्टमांशमां वर्ते छे, एटले शनि अने चंद्र वा लग्ननुं अंतर १२ अंशोनुं छे, राशिनी नवमांश कुंडली लग्न वा चंद्र त्रीजा नवमांशमां छे अने शनि छठामां, छठा नवमांशमा रहेल शनि चोथा केंद्रथी दशमा प्रथम स्थानस्थित लग्न वा चंद्रने पूर्ण दृष्टिथी देखे छे, तेथी आधी करयुति अवश्य वर्जनीय छ, आथी विपरीत शनि राशिना २२ मा त्रिंशांशमा छे अने लग्न २४ मा त्रिंशांशमां अंशान्तर बारथी ओछं छे, छतां शनि उदितांश कुंडलीमां लगने जोतो नथी तेथी आ क्रूरयुति बहुहानिकर नथी, एज प्रमाणे चन्द्र साथेनी क्रूरयुतिने अंगे पण जाणवू.
जामित्रनामक लग्नदोषलग्नथी ७ मुं स्थान 'जामित्र' कहेवाय छे, ते जामित्र ग्रहराहेत होवू सारं गणाय छे, छतां चंद्र के गुरु सातमे होय तो ए दोष घातक गणातो नथी, बुध शुक्र अने मूर्यादि पापग्रहो जामित्रमा होय तो ते वधु खराब गणाय छे, जामित्र दोष विवाहमा अवश्य वर्जनीय छ ज पण अन्य शुभ कार्योमां पण दोष शक्य होय त्यां सुधी ववो जोइये, आ संबन्धमा आरंभसिद्धिकार कहे छे
विवाह-दीक्षयोलग्ने द्यूतेन्दू ग्रहवर्जितौ। शुभौ केचित्तु जीवज्ञ-युक्तमिन्दं शुभं विदुः॥६७७॥ पञ्चपञ्चाशमे वांश, जामित्रं परमं परे। अंशादुज्झन्ति लग्नेन्द्रो-हितग्रहदूषितम् ।।६७८।।
भा०टी०-विवाह-दीक्षाना लग्नोमां सप्तम स्थान अने चंद्र ए बे ग्रहरहित होवा जोइये, केटलाको गुरु बुध युक्त चंद्रने शुभ
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