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[ कल्याणकालका-प्रथमखण्डे
वारेषु नक्षत्राणि
योगनाम रचं मं बु गुशुश हामृाअश्विाअनु।पुारे।रो। सिद्धियोग र चं में बुगुशुश मात्राउभा।कपुनाफास्वा । | पीयूषयोग
तिथि-वारजन्य शुभयोग कोष्टकसू | सो | मं | बु | गु | शु | श | योगनाम नन्दा| भद्रा | नंदा | जया | रिक्ता | भद्रा | पूर्णा ! १।६।११।७।१२/१।६।११/३।८।१३/४।९।१४/२७१२।१०।२५/12
जया | भद्रा | पूर्णा | नन्दा | शिक्ता ३।८।१३२।७।१२।५।१०।१५।६।११।२।१२
ग्रह-कृत शुभयोग लग्नमालोकयेज्जीवस्त्वथवा लग्नगो बली। वापीयोगः स विज्ञेय-स्त्वधिमित्रगृहस्थितः ॥४७२।। गुरुर्बली स्वलग्नस्थो, वीक्षयेद्रा विलग्नगः पुण्डरीको महायोगः, सर्वदा योगनायकः ॥४७३॥ शुभवर्गस्थितो जीवः, सुबली सौम्य वीक्षितः ॥ गुणशेखरसंज्ञोऽयं, योगो वा केवलं बली ॥४७४॥ एवं शुक्रोऽपि सौम्योऽपि, गुरुवद्योगकारको । ग्रन्थविस्तरभीत्याऽथ, त्वेवं संक्षिप्य चोदितम् ॥४७५।। वोत्तमगतो जीवः, शुक्रो वा चन्द्रजोऽपि वा। गुणधूर्जटिसंज्ञोऽयं, यदा ते बलिनस्तदा ।।४७६॥
भा०टी० गुरु बलबान थइने लग्नने जोतो होय अथवा ते लग्नस्थित होय अने अधिमित्रना घरनो होय तो वापीयोग थाय छे, गुरु
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