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________________ પર [ कल्यागकलिका-प्रथमखण्डे मूलहर्युत्तराभाद्र-कृत्तिकादितयः क्रमात् । भाग्यानिलाख्या: पीयूष-योगा वारेष्विनादिषु॥४६९॥ भा०टी०-- सूर्यवारे मूल, सोमे श्रवण, भोमे उत्तराभाद्रपदा, बुधे कृत्तिका, गुरुवारे पुनर्वसु, शुक्रवारे पूर्वाफाल्गुनी, शनिवारे स्वाति नक्षत्र होय त्यारे 'पीयूषयोग' नामक योगो उत्पन्न थाय छे. आ 'पीयूषयोगो' आजकाल सिद्धियोगो रूपे ओलखाय छे. तिथि-वारजन्य शुभयोग नन्दाभौमार्कयोर्भद्रा, शुक्रेन्छोश्च जया बुधे । शुभयोगा गुरौ रिक्ता, पूर्णा मन्देऽमृताह्वया ॥४७०॥ भाल्टी०-मंगल तथा रविवारने दिवसे नंदा (श६।११) तिथिओ, शुक्र तथा सोमवारे भद्रा (२।७।१२) तिथिओ, बुधवारे जया (३।८।१३) तिथिआ, गुरुवारे रिक्ता (४।९।१४) तिथिओ अने शनिवारे पूर्णा (५।१०।१५) तिथिओ शुभयोगात्मक बनी 'अमृतातिथिओ' ए नाम प्राप्त करे छे.१ शुक्रज्ञकुजमन्देज्य-वारा नन्दादिषु क्रमात् । सिद्धातिथिः सिद्धिदास्यात् , सर्वकालेषु सर्वदा॥४७१॥ भा०र्ट -शुक्रवारे नन्दा (११६।११), बुधवारे भद्रा (२।७.१२), मंगलवारे जया (३।८।१३), शनिवारे रिक्ता (४।९।१४), अने गुरुवारे पूर्णा (५।१०।१५) तिथिओ होय त्यारे ते 'सिद्धो तिथि' ए नामथी ओलखाय छे अने सदाकाल ते सिद्धिदायक होय छे. १ वसिष्ठ नारदादिको पोतानी संहिताओमां अमृता ज लखी गया छे, पण नारदसंहिताना कोइ अशुद्ध पुस्तकना 'मृतिप्रदा' आवा पाठभी व्यामोहित थइ अर्वाचीन मन्थकारोए आ वार-तिथिओने 'मृतिप्रदा' वा 'मृत्युयोगा' आवो सिद्धान्त नक्की करीने वर्ण्य कर्या छे, वसिष्ठे गुणनिरुपणाध्यायमां आ योगो नुं निरूपण कयु होवाथी आ योगो शुभ छे अज सत्य वस्तु समजवी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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