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योग-लक्षणम् ]
४९७ कराववां, देवतापूजन, गुरुपूजन, सरस्वतीपूजा अने अनेकविध मंत्रपूजनो साध्ययोगमां कराववां, बीजवाप, गृहोत्सवो, धन-धान्य संचय सर्वरत्नसंग्रह, भूमिग्रहण आदि कार्यों शुभयोगमां करावयां विलेपन, भूषण, राजदर्शन, कन्यादान, उत्साहप्रेरक कार्यों शुक्लयोगमां कराववां, शान्तिक-पौष्टिककर्म, तलावबंधन, पुलबंधन, चूडाकर्म, उपनयन, क्षौर ए सर्व ब्रह्मयोगमां करावा.
कन्यादानं गजारोहं, स्त्रीसंग वस्त्रबन्धनम् । काव्यगायनवाद्यानि, योगे चैन्द्रे प्रकारयेत् ॥४२१॥ घातनं परराष्ट्राणां, वश्चनं दाहनं तथा। छेदनं करकर्माणि, वैधृतौ तु प्रकारयेत् ॥४२२॥
भाटी०-कन्यादान, तारोहण, स्त्रीसंग, वस्त्रपरिधान, काव्याभ्यास, गानाभ्यास वाद्यकल न्यास ए कार्यों ऐन्द्रयोगमा करावा, बीजा राष्ट्र उपर चढाइ, ठग बालवू, छेदवु अने बीजां क्रूरकर्मो वैधृति योगमां कराववां.
क्षणयोगो जेम एक तिथिमा बधी तिथिओ, एक वारमा बधा वारो पोतपोताना क्षणो भोगवे छे ते प्रमाणे एक योगमां पण बधा योगो पोताना क्षणो भोगवे छे, ए विषयमा ब्रह्मर्षि वसिष्ट कहे छे
योगस्य सप्तविंशांशो, योगमानं भवेदिह । एकस्मिन्नपि योगेऽपि, सर्वे योगा भवन्ति हि ॥४२३॥
भा०टी०-एक योगमां पण सर्व योगो होय छे. अने आ क्षणयोगोनो भोगकाल इहां योगमानमा सत्तावीसमा भाग जेटलो होय छ, उदाहरण-विष्कंभ योगना आरंभनी २ घडी १३ पलोसुधी विष्कंभ योगनी भुक्ति जाणवी पछी २ घडी १३ पल सुधी प्रीतियोगनी ते पछी आयुष्माननी इत्यादि.
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