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________________ ४८९ नक्षत्र-लक्षणम् ] भा०टी०-तिथिवार नक्षत्र लग्नना अंकने ५ स्थले लखी नेमां अनुक्रमे ६।३।१।८।४ आ अंको जोडवा पछी ९ नो भाग देवो प्रथम स्थलादिनो शेष अंक ५ रहे तो अनुक्रमे रोग, अग्नि, नृप, चोर, मृत्यु नामक बाणो जाणवां. __समयभेदे बाणनो परिहार-ज्योति प्रकाशेरोगं चौरं त्यजेदात्री, दिवा राजाग्निपंचकम् । उभयोः सन्ध्ययोर्मृत्यु-मन्यकाले न निन्दितः ॥३८०॥ भा०टी०--रोग बाण तथा चौर बाणने रात्रिमा वर्जवो, राज बाण तथा अग्निबाणने दिवसे वर्जवो अने प्रातःसायं संध्याओमां मृत्यु बाणनो त्याग करवो अन्य काले बाण निन्दित नथी. ___ वार भेदे बाणनो परिहार-दैवज्ञ मनोहरे-- रवी रोगं कुजे वहि, शनौ च नृपपश्चकम् । वज्य पुनः कुजे चौरं, बुधवारे च मृत्युदम् ॥३८१॥ . भाण्टी०--रविवारे रोग, मंगलवारे अग्नि, शनिवारे राजपंचक, मंगलवारे चौर अने बुधवारे मृत्यु बाणनो त्याग करवो. कार्य मेदे वाणनो परिहार-ज्योतिः प्रकाशेनृपाख्यं राजसेवायां, गृहगोपेऽग्निपञ्चकम् । याने चौरं व्रते रोगं, त्यजेन्मृत्यु करगृहे ॥३८२॥ भाण्टी--राज सेवामां राज याण, घर ढांकवामां अग्निबाण यात्रामा चौर पंचक, व्रतमा रोग, अने विवाहमा मृत्यु पंचकनो त्याग करवो. नाग अने मृत्युवाणनो परिहारनाग-मृत्यु सदा त्याज्यो, सन्ध्ययो हिकैजनैः। तत्रापि यत्र लग्नं चेहलाढयं तच्च निष्फलम् ॥३८३।। भा०टी०--नाग अने मृत्यु पंचक बालिक देशना लोकोए ६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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