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(कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे जोइ छ अने आमां चालती भूलो सुधारी छे. तांत्रिकोनी मान्यता छे के जे देवताने जे मुद्रा प्रिय होय तेनी पूजा ते मुद्रादर्शनपूर्वक करवाथी ते प्रसन्न थाय छे. गमे तेम पण अमारा पूर्व प्रतिष्ठा कल्पकारोए विधिमां मुद्राओनो स्वीकार कर्यो छे तेथी आजना प्रतिष्ठाचार्योए तथा स्नात्रकारोए मुद्राओ शिखवी आवश्यक छ, आम आ प्रथमखंड शिल्पीओ ज्योतिषीओ अने प्रतिष्ठाकारोने उपयोगी थइ पडशे एवी आशा छ.
छेवटे आ खंडमां-खास करीने शिल्प परिच्छेदोमा आधार ग्रन्थोनी अचोकसताने लेइने कोइ समज फेरनी भूल दृष्टिगोचर थाय तो सुधारीने वांचवानी वांचकगणने प्रार्थना छे.
माधवपुरा-अमदावाद, माघशुक्ल ५ गुरु, ता० १६-२-१९५६.
कल्याणविजय.
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