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नक्षत्र-लक्षणम्
भा०टी०-पंचांगमां अपाता २७ योगो पैकीना शूल, गंड, हर्षण, व्यतिपात, साध्य, वैघृत आ योगोना अन्तमा जे नक्षत्र होय छे ते उपर पातदोष होवाथी तेनो त्याग करवो. ज्योतिषीओ आ 'पात' ने ' चण्डीशचण्डायुध ' अथवा, शिवना आयुध तरीके वर्णवे छे, केशवार्क कहे छे-- यदन्तगं हर्षणसाध्यशूल-गण्डव्यतीपातकवैधृतीनाम् । तत्रैव चन्द्रोडुनि चण्डमैश-मस्त्रं पतेन्मङ्गलभङ्गलक्ष्म ॥३३३।।
भा०टी०–हर्षण, साध्य, शूल, गण्ड, व्यतीपात, वैधृति, आ योगोना अन्तमा जे चन्द्र नक्षत्र होय, एटले जे नक्षत्रमा आ योगोनी समाप्ति थाय तेज चन्द्र नक्षत्र उपर शिवचं ‘चण्डास्त्र' पडे छे जे मंगल कार्यना नाशन चिह्न छे.
ज्योतिषीओनी दृष्टिमां पातनी भयंकरतापातेन पतितो ब्रह्मा, पातेन पतितो हरिः। पातेन पतितो रुद्रस्तस्मात्पातं विवर्जयेत् ॥३३४॥
भा०टी-पातवडे ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर जेवा पडया छे माटे पातने विशेष करीने वर्जवो.
देशविशेषे पातनी व्यवस्थाचित्रांगतः पात विचित्रदेशे, मैत्रे मघा मालवके निषिद्धः। पौष्णश्रुती चोत्तरदेशजातः, सर्वत्र वय॑श्च भुजंगपातः॥३३५॥
भा०टी०-चित्रागत पात विचित्र देशमां, अनुराधा मघागत पात मालवामा अने रेवती श्रवण ज्ञापित पात उत्तर देशमा निषिद्ध छे. ज्यारे आश्लेषामित नक्षत्रपात सर्वत्र वर्जनीय छे.
पातनो अपवाद वसिष्ठ कहे छचण्डायुधं सचण्डीश, हन्ति सिद्धा तिथिर्यथा। आन्त्रवृद्विर्यथा कार्य, निखिलं सुदृढं यथा ॥३३६॥
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