________________
नक्षत्र-लक्षणम्
लत्ता विषे केशवार्कनो मतइति सति ासदामभिलत्तने, पदनुलत्तनमुक्तमृषिव्रजैः।
नदुडुपश्चिमपूर्वविभागयो
रनधिकाधिकदोषविवक्षया ॥३२७।। भा०टी०- परिस्थितिमां ग्रहोनी लत्ताने अंगे ऋषिगणे जे अनुलत्ता एटले सामेथी लात कही छै ते नक्षत्रना पाछला अने पूर्वला भागोनी अपेक्षाए अल्प अने अधिकफलनी अपेक्षाए छे, जे ग्रह नक्षत्रना पाछलना भागने लत्ता बडे ताडित करे छे ते ओछु असरकारक होय छे ज्यारे सामेनी लत्ता अधिक पीडाकारी होय छ सामेनी अने पाछली लातनो ए तात्पर्यार्थ छे. शुभाशुभलताना फलतारतम्य विषे केशवार्क कहे छे
उड्डुनि निर्दलिते शुभलत्तया, न फलमस्ति बलस्य गलत्तया। अशुभ लत्तितमत्ति तदूढयो
धनसुता न सुतापकरं परम् ॥३२८॥ भाण्टी०-शुभ ग्रहनी लत्तावडे हणायेल नक्षत्र बलहीन होइ तेनुं शुभ फल नथी अने अशुभ ग्रहवडे लत्तित नक्षत्र तो तेमां परणनाराओना धन अने पुत्रोनो नाश करे छे अने प्राणोने संपात करावे छे.
___ वराह प्रत्येक ग्रहनी लत्तानुं फल कहे छे-- रविलत्ता वित्तहरी, नित्यंकोजी विनिर्दिशेन्मरणम् । चान्द्री नाशं कुर्याद् बौधी नाशं वदत्येव ॥३२९॥ सौरी मरणं कथयति, बन्धुविनाशं वृहस्पतेर्लत्ता। मरणं लत्ता राहोः, कार्यविनाशं भृगोर्वदति ॥३३०॥
भा०टी०-सूर्यनी लत्ता धननो नाश करनारी छे, मंगलनी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org