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________________ ४४० [ कल्याण-कलिका - प्रथमखण्डे वस्तु पूर्वमां, मंदनेत्रे दक्षिणमां, मध्यक्षेत्रे पश्चिममां अने सुनेत्रे गयेल वस्तु उत्तर दिशामां जाय छे. नक्षत्रोना देवमानवादि गण -- दस्रादितीज्यमृगमैत्रकरानिलान्त्य-लक्ष्मीशभानि नव देवगणः प्रदिष्टः । पूर्वात्रियान्तक विधातृहरोत्तराणि, धिष्ण्यानि मानुषगणोऽत्र नव प्रदिष्टः ||२२०|| पितृद्विदैवाग्निशतेन्द्रमूलवस्वाहि चित्रर्क्षगणोऽसुराख्यः । देवासुराणां मनुजासुराणां, वैरं महास्नेहमथेतरेषाम् ॥ २२१|| - भा०टी० – अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, मृगशिरा, अनुराधा, हस्त, स्वाति, रेवती अने श्रवण ए नव नक्षत्रोनो गण देवगण कहेल छे. पूर्वाफाल्गुनी पूर्वाषाढा पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपदा भरणी, रोहिणी, आर्द्रा आ नव नक्षत्रोनो 'मानवगण' कह्यो छे अने मघा, विशाखा, कृत्तिका, शतभिषा, ज्येष्ठा, मूल, धनिष्ठा, आश्लेषा चित्रा आ नव नक्षत्रोनो 'राक्षसगण ' मानेल छे. देवगण अने मानवगण वालाओने 'राक्षसगण ' वालानी साथे वैर होय छे ज्यारे बीजाओने आपसमा महाप्रीति होय छे. नक्षत्रयोनि अश्वेभमेषभुजगद्वयक्कुक्कुरौतमेषौतुमूषकम होन्दुरुगोलुलायाः । शार्दूलमाहिषगवारिमृगद्वयश्व-कीशोऽथ बभ्रुयुगकी शगवाश्वसिंहाः ॥ २२२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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