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________________ नक्षत्र-लक्षणम् ] ४२७ शिर,कु घ ङ छ-आर्द्रा, के को ह हि-पुनर्वसु, हुहेहोडा-पुष्य, डीडूडे डो-आश्लेषा, मा मी मू मे-मघा, मो टा टी टु-पूर्वाफाल्गुनी, टे टो प पी-उत्तराफाल्गुनी, पुषण ठ-हस्त, पे पो र रि-चित्रा, रु रे रो ता-स्वाति, ती तू ते तो-विशाखा, न नी नू ने-अनुराधा, नो य यी यु-ज्येष्ठा, ये यो भा भि-मूल, भुध फ ढ-पूर्वाषाढा, भे भो जा जी-उत्तराषाढा, जु जे जो खा-अभिजित् , खी खू खे खोश्रवण, ग गी गु गे-धनिष्ठा, गो सा सी सू-शतभिषा, से सो द दि-पूर्वाभाद्रपदा, दु श झ थ-उत्तराभाद्रपदा, दे दो च ची-रेवती, ए २८ नक्षत्रोना ११२ चरणोना ११२ अक्षरो छे, जे नक्षत्रना जे चरणमां कोइनो जन्म थाय त्यारे ते चरणना अक्षर प्रमाणे तेनुं नामकरण थाय, अश्विनीना प्रथम चरणनो अक्षर 'चु' छे तो अश्वि नीना ते चरणमा जन्मनारनुं नाम 'चु--चू' आ अक्षर आदिमा हशे ते अपाशे, आम सर्वत्र समजी लेवू, बतावेल अक्षरोमां इस्त्र होय त्यां दीर्घ के दीर्घ होय त्यां ह्रस्व पण समजी लेवो, एज रीते एक मात्रावाला जोडे द्विमात्रावालो के द्विमात्रावाला जोडे एकमात्रावालो वर्ण पण जाणवो, ज्यां घङछ, षणठ, घफढ, शझथ, ए केवल अवर्णान्त व्यञ्जनो छे त्यां अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ, आ दश स्वरो लगाडीने नाम पाडवां, 'ब' ने वने सरखा गणवा, 'ऋ' आधाक्षरवालानुं नक्षत्र 'रि' प्रमाणे समजवू. जो के 'उम्ञण' अक्षरो कोइना नामनी आदिमां होता नथी छतां चरणवेधादिनुं फल ते चरणमां जन्मनारने मले छे तेथी प्रत्येक चरणाक्षरनी उपयोगिता छे. नक्षत्रोना स्वामिओप्रत्येक नक्षत्रनो भिन्न भिन्न स्वामी होय छे, जेनो उपयोग नक्षत्र क्षण जोवामां थाय छे तेथी मुहूर्त प्रकरणने अंते नक्षत्र स्वामिओ बताव्या छे अहियां पुनरुक्ति करता नथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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