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नक्षत्र-लक्षम्]
४२५ अने चोथामा 'अर्धयाम' नामक दुष्ट अपयोगो होय छे. एज रीते बुधवारे बीजु 'अमृत' नुं चोघडीयुं जाणी अपाय छे. ज्यारे ते चोघडियामां ' यमघंट' नामक वार दोष होय छे तेनो कोइ विचार करतुं नथी, ते दिवसे त्रीजु चोघडियु 'काल' जाणी त्यजी देवाय छ ज्यारे चोथु शुभ जाणी लेवाय छे वस्तुस्थिति आथी उलटी छे. बुधवारे त्रीजु चोघडियु निर्दोष-शुद्ध होय छे. ज्यारे चोथामा 'कुलिक ! 'मुहूर्तकुलिक' अने 'दुर्मुहूर्त' नामना त्रण दुष्ट योगो होय छे, आम प्रत्येक वारे 'शुभ' गणातां आ चोघडियाओमां 'अशुभयोगो' आवे छे, माटे आ चोघडियाओ उपर अवश्य विचार करवो घटे छे.
नक्षत्र नक्षत्र २७ छे ए सर्वसंमत विषय छे, कचित् नक्षत्र संख्या २८ नी जणावी छे तेनुं कारण 'अभिजित् 'नी गणना छे, पण अभिजित्नो उपयोग वेध, लत्ता आदि जोवा पूरतो मर्यादित होवाथी नक्षत्रमालामां तेनी गणना नथी तेम नक्षत्र विधेय कार्यनी चर्चामां पण अभिजित् नुं विधान नथी, उत्तराषाढाना चतुर्थ चरण अने श्रवणना प्रथम चरणनी आदि ४ घडीओ आ लगभग १९ घटिकापरिमित नक्षत्रभोगने 'अभिजित् ' नाम आपेलं छे, आरंभसिद्धिकार प विषयमां कहे ले--
उत्तराषाढमन्त्यांहिं, चतस्रश्च श्रुतेघंटोः। वदन्त्यभिजितो भोगं, वेधलत्ताद्यवेक्षणे ॥१५९॥
भा०टी०-उत्तराषाढाना अंतिम चरण अने श्रवणनी ४ घडीओने 'अभिजित् 'नो भोग कहे छे, जेनो उपयोग वेध लत्ता आदिना जोवामां थाय छे, खरी रीते अभिजित् पेटा नक्षत्र छे.
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