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तिथि-लक्षणम् ]
३९७ सर्व कार्यो एकादशीमा करवाथी सिद्ध थाय २. पृथ्वी उपर यात्रा अने अन्नप्राशन सिवाय जे चर स्थिर शुभ अने पौष्टिक कार्यों छे, ते द्वादशीमां करवाथी सिद्ध थाय छे. द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमीए करवानां कायों त्रयोदशीए करवाथी विशेष प्रकारे सिद्ध थाय छे. यज्ञकर्म, पौष्टिक, मांगलिक, युद्धोपयोगी सर्व वास्तुकर्म, विवाह, शिल्पकर्म, सर्व प्रकारना आभूषणो अने प्रतिष्ठानां कार्यों पूर्णिमाए करवा. अमावास्याना दिवसे पितृकर्म (श्राद्धादि) विना वीजुं कर्म शांतिक पौष्टिकादि कंइ पण कर नही. मूखों द्वारा अमावास्याना दिवसे जे शुभ उत्सवादि कराय छे ते अवश्य विनाश पामे छे.
चतुर्दश्यष्टमी कृष्णा, त्वमावास्या च पूर्णिमा । पुण्यानि पंच पणि, संक्रान्तिार्दनपस्य च ॥१९॥ पञ्चपर्वसु पाते च, ग्रहणे चन्द्रसूर्ययोः। नर श्चाण्डालयोनिः स्यात् , तैलस्त्रीमांससेवनात् ॥१००/ पश्चपर्वसु नन्दासु, न कुर्यादन्तधावनम् । नत्र कुर्यादनाहत्य, स नरो विधिहन्तकः ॥ १०१ ॥
भाण्टी-बंने चतुर्दशी कृष्णाष्टमी अमावास्या पूर्णिमा ए पुण्य पदों , तेम मर्यसंक्रान्ति पण पर्व छे. ए पांच पर्वोमां पातमां अने चन्द्र मयेना ग्रहणमां तैलाभ्यंग, स्त्रीसेवन अने मांस भक्षण करनार पुरुष भवान्तरमा चण्डालनी योनिमां उत्पन्न थाय छे, पांच पदों अने नन्दातिथिओमां दन्तधावन न कर जोइये, जे मनुष्य आ वातनो अनादर करीने उक्त कामो करे छे, ते विधिहतक समजवो.
नवमी त्रिविधा ज्ञेया, प्रवेशनवमी प्रयाणनवमी च । नवमदिनं निर्गमतः प्रवेशनवमीति विख्याता ॥१०२।।
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