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तिथि-लक्षणम् ]
सिद्धिं प्रयान्त्याशु ऋणप्रदानं,
विना सदा नागतिथौ प्रभूतम् ॥ ९१ ।। भाण्टी--विवाह, यात्रा, उपनयन, प्रतिष्ठा, सीमन्त, चूडाकर्म, सर्व वास्तुकर्म अने गृहप्रवेशादि सर्व मांगल्य कार्यो शुक्ल प्रतिपदाने दिवसे कदापि न करवा. राजानां सप्तांग चिह्नो, वास्तुकर्म, व्रत, प्रतिष्ठादिक सर्व मांगलिक कार्यों, यात्रा, विवाह, सर्व आभूषण आदि कार्य द्वितीयादि तीथिना दिवसे सदा करबां. संगीतविद्या, सर्व प्रकारचें शिल्पकर्म, सीमन्त, चूडाकर्म, अन्नप्राशन, गृहप्रवेश अने द्वितीया तिथिए करवानां जे कार्यो कह्यां छे ए पण वयां कार्यों तृतीयाना दिवसे पण करवां.
रिक्ता तिथिओमां (चोथ-नवमी-चतुर्दशीमा ) शत्रुनो वध, बन्ध, शस्त्र, अग्नि, विषप्रयोग, घातादि कार्यों सिद्धिने पामे छे. आ रिक्ताओमां मूढ माणसो द्वारा करायेलां मांगलिक कार्यो निश्चयथी नाश पामे छे. चर के स्थिर कहेल के न कहेल मात्र एक भणदान विना बधां शुभ कार्यों पंचमीए करवाथी जल्दी सिद्ध थाय छे.
अभ्यङ्गयात्रापितृकर्मदन्तकाष्ठं विना पौष्टिकमंगलानि । षष्ठयां विधेयानि रणोपयोग्य
शिल्पानि वास्त्वम्बरभूषणानि ॥ १२ ॥ द्वितीयायां तृतीयायां पंचम्यां सप्तमीतिथौ । उक्तानि यानि सिध्यन्ति, दशम्यां तानि सर्वदा ॥ ९३ ॥
भा०टी०-अभ्यंग (तैलमर्दन ) यात्रा, पितृकर्म, दन्तधावन आ चार कार्यो सिवाय पौष्टिक, मांगलिक, युद्धोपयोगी शिल्पकर्म,
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