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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे २२, धनिष्ठा २३, शतभिषा २४, पूर्वाभाद्रपदा २५, उत्तराभाद्रपदा २६ अने रेवती २७, नक्षत्रोना स्वामीओ छे.
वास्तुकर्ममां शुभ मुहूर्ती-गृहारंभ आदि वास्तुकरिंभमां कया मुहूर्तों लेवा ? ए विषयमा मात्स्यपुराण नीचे प्रमाणे कहे छे
श्वेते मैत्रे च माहेन्द्र, गन्धर्वाभिध-रोहिणे। तथा वैराज-सावित्रे, मुहूर्ते गृहमारभेत् ॥ ११ ॥
भा०टी०-श्वेत (२जु), मैत्र (३जु), भाहेन्द्र (१३मु), गन्धर्व (७मुं), रौहिण (९मुं), वैराज (६ठं) अने सावित्र (५मुं); आ सात मुहूतों पैकीना कोई पण शुभ मुहूर्तमां गृहारंभ करवो.
मुहर्ताना संबन्धमां लल्लाचार्य कहे छश्वेतो मैत्रो विराजश्च, सावित्र अभिजित्तथा। बलश्च विजयश्चैव, मुहूर्ताः कार्यसाधकाः ।। १२ ॥
भा०टी०-श्वेत (२), मैत्र (३), विराज (६) सावित्र (५), अभिजित् (८), बल, (१०). अने विजय (११); आ मुहूर्तो सर्व कार्य साधक छे.
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