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परिच्छेद सोलमो
-: मुहूर्त लक्षण :चैत्यसत्कमुहूर्तानि, भूम्यारम्भादिकानि हि । प्रतिमास्थापनान्तानि, वर्ण्यन्तेऽत्र समासतः ॥१७॥
भा०टी०-जिन चैत्य (प्रासाद) संबन्धी खात मुहूर्तथी मांडीने प्रतिमा स्थापन सुधीनां तमाम मुहूर्तों आ परिच्छेदमा संक्षेपथी वर्णन कराय छे.
मुहूर्तनो विषय अति विशाल छ, एना निरूपणमां शुं लेबु अने शुं नहि ए विषय विचारणीय थइ पडे छे, प्राचीन शिल्प संहिताओमां ज्योतिपनी सविस्तर चर्चा करेली छे, एथी समजाय छे के शिल्पकारो ज्योतिष विद्याने पण शिल्प विद्यार्नु एक अंग गणना हता. मध्यम कालीन अने आधुनिक विद्वानोए पण पोताना ग्रन्थोमां ए वस्तुनुं स्मरण कयु छे, एटले अमो पण प्रासादनी साथे संबद्ध मुहू. सौनी चर्चा करवी योग्य धारीये छीये. ____ 'मुहूर्त' शब्दनो पारिभाषिक अर्थ दिन तथा रात्रि प्रत्येकनो पंदरमो भाग एवो थाय छे. पूर्व ज्यारे पंचांग शुद्धि तथा लग्ननो प्रचार न हतो त्यारे प्रत्येक कार्य नक्षत्र अने मुहूर्त बलथी ज करात हतुं. आज मुहूर्तनो विशेष आदर नथी, छतां ज्योतिष शास्त्रमा आजे य मुहूर्त- नाम मोखरे छे, आ कारणथी ज अमोए 'मुहूर्त' शब्दने पसंद कर्यो छे.
दिवस-रात्रिना १५-१५ मुहर्ता-पूर्वे अने आज काल पण ६० घडीना अहोरात्रना १ त्रिशांशने मुहूर्त कहेता अने कहे छे; पण आ मुहतों २ घडीनां मनाय छे अने दिनमान अथवा रात्रिमान
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