SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५ प्रस्तावना अन्यान्य शास्त्रोमां जेम सामान्य-विशेष नियमो होय छे तेम शिल्पशास्त्रमा पण आवा नियमो होय छे. सामान्य नियम त्यां सुधी ज लागु पडे छे ज्यां सुधी विशेष नियम न आवे, पण ज्यां विशेष निय पर्नु विधान आवे छे त्यां सामान्य नियम उभो रहेतो नथी आ वातने अमो दृष्टान्तथी समजावीशु. "कुंभकेन समा कुंभी, स्तंभप्रान्तेन तूद्गमः।” इत्यादि श्लोकोमा बतावेल वाढसंबन्धी सामान्य नियम छ अंने सामान्य रीते लघु प्रासादोमां चाल्या करे छे पण ज्या ज्येष्ठ प्रासादोमां उदुम्बर गालवानो नियम लागु कराय छे त्यां " कुंभकेन समा कुंभी" इत्यादि नियम रद थाय छे अने ए माटे नवो नियम घडाय छे जे आ प्रमाणे" उदुम्बरोनितां कुंभी, कुर्यात् स्तंभं च पूर्वकम् । निरन्धारे च सान्धारे, कुंभिकान्तमुदुम्बरम् ॥" अर्थात्-कुंभीने उंबरा जेटली ओछी करवी अने स्तंमर्नु मथारुं पूर्ववत् दोढीया बरोबर ज करवू, निरंधार तेमज सांधार प्रासादमा कुंभी-उंबरानुं मथारुं बरोबर करवू" क्षीरार्णवना उपरोक्त नवा विशेष नियमथी 'कुंभकेन समाकुंभी ' वालो सामान्य नियम लोपाय छे. वृक्षार्णव पण प्रचलित नियमने अंगे कहे छे" उदुम्बरसमा कार्या, कुंभिका सर्वतो बुधैः" अर्थात्-‘विद्वान् शिल्पिओए सर्वत्र कुंभी उंबरा जेटली ज उंची करवी जोइए; क्षीरार्णव तथा वृक्षार्णवना उक्त लेखोथी उंबरो गालवा छतां " कुंभकेन समा कुंभी" ए बाधित नियमानुसारे जेओ कुंभीने उंबराथी उंची करे छे तेमने बोध लेवो घटे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy