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प्रस्तावना
अन्यान्य शास्त्रोमां जेम सामान्य-विशेष नियमो होय छे तेम शिल्पशास्त्रमा पण आवा नियमो होय छे. सामान्य नियम त्यां सुधी ज लागु पडे छे ज्यां सुधी विशेष नियम न आवे, पण ज्यां विशेष निय पर्नु विधान आवे छे त्यां सामान्य नियम उभो रहेतो नथी आ वातने अमो दृष्टान्तथी समजावीशु.
"कुंभकेन समा कुंभी, स्तंभप्रान्तेन तूद्गमः।”
इत्यादि श्लोकोमा बतावेल वाढसंबन्धी सामान्य नियम छ अंने सामान्य रीते लघु प्रासादोमां चाल्या करे छे पण ज्या ज्येष्ठ प्रासादोमां उदुम्बर गालवानो नियम लागु कराय छे त्यां " कुंभकेन समा कुंभी" इत्यादि नियम रद थाय छे अने ए माटे नवो नियम घडाय छे जे आ प्रमाणे" उदुम्बरोनितां कुंभी, कुर्यात् स्तंभं च पूर्वकम् । निरन्धारे च सान्धारे, कुंभिकान्तमुदुम्बरम् ॥"
अर्थात्-कुंभीने उंबरा जेटली ओछी करवी अने स्तंमर्नु मथारुं पूर्ववत् दोढीया बरोबर ज करवू, निरंधार तेमज सांधार प्रासादमा कुंभी-उंबरानुं मथारुं बरोबर करवू"
क्षीरार्णवना उपरोक्त नवा विशेष नियमथी 'कुंभकेन समाकुंभी ' वालो सामान्य नियम लोपाय छे.
वृक्षार्णव पण प्रचलित नियमने अंगे कहे छे" उदुम्बरसमा कार्या, कुंभिका सर्वतो बुधैः"
अर्थात्-‘विद्वान् शिल्पिओए सर्वत्र कुंभी उंबरा जेटली ज उंची करवी जोइए;
क्षीरार्णव तथा वृक्षार्णवना उक्त लेखोथी उंबरो गालवा छतां " कुंभकेन समा कुंभी" ए बाधित नियमानुसारे जेओ कुंभीने उंबराथी उंची करे छे तेमने बोध लेवो घटे छे.
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