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प्रस्तावना ]
आपत्तिमांथी उगरवा माटे गुर्जर शिल्पिओए सालने जुदुं पाडी उपरना दंडने : समग्रंथि विषमपर्व ' बनाव्यो पण आम करतां दंड प्रमाणमां घणो लांच थइने शास्त्रविरुद्ध बनी जशे एनो विचार न कर्यो, आ देशना विद्वान शिल्पिओने मारी सलाह छे के तमारी आ पद्धति बदलवी जोइये, आम करवाथी दण्ड लाक्षणिक नहिं बने एवी चिन्ता करवानी कंह ज जरूर नथी, आजे जेवा प्रकारनी दंडने बंगडीओ जडाय छे एवी ज होवी जोइये एवो कंड शास्त्रलेख नथी, दंडना विषभ पर्यो स्पष्ट देखाय एटलं ज मात्र गांठोनुं कर्तव्य छे अने ए काम दंडना सालने नीचे चूडीना आकारे वे आनी जाडी पातळी जडवाथी पण थह शके छे, नवजुनुं छेद तथा ध्वजाधारनो खाडीएवी रीते तैयार करो के तेमां दंडनुं साल आवी जाय अने दंड पण 'समग्रंथि विषमपर्वा ' बनी रहे अने दंडनुं प्रमाण पण न वधे.
(१३) देवासन विषे भ्रमणा
आजकालना केटलाक स्वयंभू शिल्पिओ जिनदेवना आसन स्थान विषे भ्रमणामां पढया छे, छतां तेओ ए विषयमा पोताने निर्भ्रान्त गणीने पोतानी ते मान्यतानी पुष्टि करे छे अने पोताना स्तनां चैत्योमां शिल्पिओ उपर दवाण करीने ते प्रकारे भूलभरेल' आसन तैयार करावी तेना मध्यभागे जिनप्रतिमाने बेसाडावे छे एप्रमाणे कराववामां तेओ आचार दिनकरना नीचेना श्लोको प्रमाण रूपे बतावे छे.
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" प्रासादगर्भगेहार्थे, भित्तितः पंचधा कृते । यक्षाद्याः प्रथमे भागे, देव्यः सर्वा द्वितीयके ॥ जिनार्कस्कन्दकृष्णानां प्रतिमाः स्युस्तुतोयके । ब्रह्मा तु तुर्य भागेऽस्य, लिङ्गमीशस्य पञ्चमे ॥"
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