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________________ जैनशासनदेव-लक्षणम्] तर्या तेज दिवसथी यक्षोए राजा सिद्धार्थना घरे धन-रत्न आदिनी वृष्टि करवा मांडी हती. उत्तराध्ययन आदि सूत्रगत "जक्खाउत्तरउत्तरा" इत्यादि वर्णनोमां 'यक्ष' शब्दनो प्रयोग सर्वोत्तम जातिना देवोना अर्थमां करवामां आव्यो छे. ए वस्तु पण आपणुं ध्यान रखेंचे छे. शास्त्रना वर्णनोमां ए वातनुं पण निरुपण मले छे, के उत्तर दिशानो लोकपाल कुबेर के जे देवोनो भंडारी अने इन्द्रनो आज्ञापालक देव छे, अने “यक्षो" आ कुबेरनी आज्ञामां वर्तनारा देवो छे. ___ आ बधी वातोनो विचार करतां आपणा हृदयमा ए वात सहजे उतरी जाय छे, के 'यक्ष' एक परोपकारी-सात्विक-धनाढय-कारुणिक अने क्रीडाशील देवजातिविशेपर्नु नाम छे, आ यक्षोनी मुखाकृति, वाहन, आयुध आदिना निरुपण उपरथी पण जणाई आवे छे के आ देव जाति भली अने क्रीडाप्रिय होवी जोईये. २ जैनोनी मान्यता प्रमाणे कोईपण तीर्थंकर केवलज्ञान पामे त्यारे तेमना पुण्यप्रकर्षना बले क्रोडो देवो तेमनी सेवामां उपस्थित थाय छे, तेमना समवसरणनुं (उपदेश सभाना योग्य स्थान-) निर्माण करे छे, अने तीर्थकर भगवान् त्यां बेसी जगत हितकारक जिनप्रवचननो उपदेश करे छे, जे सांभलीने अनेक भव्यात्माओ प्रतिबोध पामी तेमना शासन- अनुकरण करे छे, सेंकडो स्त्री-पुरुषो संसारने त्यागी जिनेश्वर समुपदिष्ट त्यागमार्गनो स्वीकार करे छे, हजारो स्त्रीपुरुषो जिनोपदिष्ट गृहस्थ धर्मरुप त्यागमार्गमां दाखल थाय छे, ज्यारे लाखो देव मनुष्यो विरति परिणामना अभावे जिनदेवना प्रवचन उपर श्रद्धा विश्वास मात्र प्रगट करीने तेमना संघमां जोडाय छे. तीर्थकर देवोनी आ प्राथमिक संघ स्थापनामां एम तो क्रोडो देवो उपस्थित रहे छे. छतां कोई एक देवयुगलने भगवन्त उपर अने तेमना शासन उपर अतिशय भक्तिभाव उभरी जतां ते नित्य भग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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