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________________ परिकर-लक्षणम् ] भा०टी०-ते पछी छत्र नीचे २२ आंगलर्नु' भामंडल करवू. नीचेनुं छत्र निर्गमे १० आंगल, बीजु ८ आंगलनु, त्रीजु ६ आंगलनुं अने चोथु ४ आंगलन करवू. आम रथिकानी जेम उपस्थी उपरनो हास करवाथी छानो आकार बनशे, परिकरमा आवता वंशधर-वीणाधर-शंखधरादि सर्वे दिव्य देहधारी-देवो जिनेन्द्र भक्तिमा प्रीतिवंत होय छे, जाणे यादिवोनी साथे ज जन्म्या होय तेम वादित्रो युक्त अने पुष्पमालाओथी निन्य भूपित रहे छे, माटे एमना रूपको पण एज प्रकारनां करबां. भामंडल एटले दिव्य तेज किरणोनो समूह के जे जिनेन्द्रना मुखने प्रकाशित करतो तेमना मस्तक पाछल एकत्रित करायेलो चमझी रह्यो होय छे ते छे, आजे सर्व तीर्थकरो निर्वाण प्राप्त करी सिद्धिस्थानमां ज्योति स्वरूपी रहेला छे जाणे के ए वस्तुने ज सूचवतुं होय तेम भामंडल दिव्य तेजः किरणना प्रतीक समुं छे. दोलाना मस्तक भागमां कलश बना वो, तेने मुद्गरो (मयूरो) अने हाथिओना शुंडादंडो बडे भरपूर शोभायुक्त करवो, अशोकवृक्षना पत्रो देखाडवां अने तेना ऊर्ध्वदेशमा जमणी तरफ सूर्यादि अने डावा भागनी तरफ बृहस्पत्यादि सधैं ग्रहो देखाडवा, केमके ग्रहो पण तीर्थकरोना धर्मप्रचारमा वृद्धि करनारा छे. वास्तुसारोक्त परिकर-परिमाण सिंहासन१-विंबना विस्तारथी सिंहासन दोढुं, लंबु, अधु विस्तृत अने पाव भागनुं जाडु करी नेमां ९ अथवा ७ रूपको करवां, बे वाजु ---... १ भामंडलनो पेसारो वास्तुसारमा ८ आंगलनो जणाव्यो छे अने एनो उदय शिल्परत्नाकरना लक्षणमा २४ आंगलनो कह्यो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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