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________________ ३०२ [ कल्याण- कलिका - प्रथमखण्डे द्वंद्वास्तस्योsa कर्तव्याः सर्वलक्षणसंयुताः । 0 भा०टी० - मस्तकने अन्ते उपर फणा मण्डप करवो, सुपार्श्वनाथने ३ वा ५ अने पार्श्वनाथने ७ अथवा ९ फणवाला करवा, एथी ओछ फोन करां. अधिक करवामां दोष नथी. त्रण छत्रो पैकीना सर्वथी नीचेना छत्रनो उतार नाकना अग्रभागे होवो जोईये, जेथी अवलंब उतारतां नाक अने ललाटना अंतभागे कपालनो वेध थायः दोला तोरणनी लंबाई ८४ आंगलनी अने उदय ५० अंगलनो करवो. दोला - तोरण उपर जे जे रुपको करवानां होय ते सर्व द्वंद्वरूपे अर्थात् जे रुपक एक बाजुमां होय तेज तेनी सामे बीजी बाजुर पण कर, सर्व द्वंद्व लक्षणोपेत करवां. भामंडलं ततो मध्ये, तिलकं वाम-दक्षिणे ॥३०॥ अंगुलद्वादशं प्रोक्तं, तिलकं विस्तृतं भवेत् । उदये षोडशं प्रोक्तं, तिलके चात्र रूपकम् ||३१|| उपरि छायकी ज्ञेया, घंटा-कलशभूषिता । नासिके स्तंभिकादौ च मयूरं वाम दक्षिणे ||३२|| गायनस्तुबरुः श्रेष्ठो, वंशवाद्यो रत्नशेखरः । वीणा - वंशधराः प्रोक्ता, मध्यस्थाने इति स्मृताः ॥३३॥ 3 १ वास्तुसारना परिकरलक्षणमां दोलाना उदयना अने दैर्घ्यना अंको नीचे प्रमाणे आप्या छे, उदय दोलाना प्रारंभथी २४ भागे छत्रनो प्रारंभ, छत्रनो उदय १२ भागे, शंखधरनो उदय भाग ८, वेणु पत्रवल्ली भाग ६, एम २४+१२+८+६=५० थशे, तथा दैर्ध्यमां छत्रार्ध भाग १०, कमलनाल भाग १, मालाधर १३, थांभली भाग २, वंशवीणाधरभाग ८, मध्यमां घंटा भाग २, मकरमुखसहित थांभली भाग ६, एवं १०+१+१३+२+८÷२ +६= ४२ थशे. आ दोलार्धनुं दैर्ध्य थयुं, पूर्ण दोलानुं दैर्ध्य आधी बमणुं ८४ भागनुं जाणवुं; वास्तुसारमां दोलानी जाडाई प्रतिमानी जाडाईथी अर्धी बतावी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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