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________________ २९६ [कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे मान शुं होय ? छत्रोटो कया प्रमाणनो होय ? अने शंख दुन्दुभि वगाडनाराओ माटे केटला आंगलनुं मान छे ? हे सृष्टिना स्वामी ! कृपा करीने ए सर्व हकीकत कहो ! जवाबमा विश्वकर्माजीए कह्यु पूर्व जणावेलां परिमाणोपेत प्रथम सुन्दर प्रतिमा तैयार करवी अने पछी जे वर्णना द्रव्यनी मूलप्रतिमा होय तेज वर्णना द्रव्यवडे तेनो परिकर बनाववो; प्रतिमाना वर्णथी विरुद्ध वर्णनो परिकर बनावतां सर्वत्र महादोषनी उत्पत्ति थाय छे. हां, जो प्रतिमा रत्ननी, मरकतमणिनी, अथवा तो स्फटिकनी होय तो प्रतिमाना परिकरमां विवर्णतानो दोष गणातो नथी. आसनं च अतो वक्ष्ये, भंगान् वक्ष्यामि त्वं शृणु। अर्चाऽर्धोदयकं कार्य, सिंहासनं त्रिदीर्घकम् ॥६।। सर्वतः कर्णा संयुक्त-मंगुलादिकमुच्छ्ये। निर्गतमर्योदयं चैव, उभयो ाम-दक्षिणे ॥७॥ द्वादशांगुलभवं रुपं, द्वयंगुला छाद्यकी तथा । वेदाङ्गुलमुपरिष्टात् , कर्णकं चषकैस्तथा ॥८॥ उदयश्च समाख्यातो, दैये वै कथ्यतेऽधुना। भा०टी०-हवे आसन अने तेनी रचनाना प्रकारो कहुं छु, ते सांभल ? प्रतिमाना उदय करतां सिंहासन उंचाईमा अधु राखg अने उंचाईथी त्रणगुणुं दीर्घ करवू, तेने सर्व तरफ कणीयुक्त करवु, कणीनो उदय आंगलनो करवो, डाबी-जमणी बाजुए सिंहासनना उदय थकी अर्ध निर्गम करवो, १२ आंगल परिमाणमा रुपक करवु, २ आंगलनी छाजली अने ते उपर ४ आंगलमा कणी १करवी, आम उदय कह्यो, हवे विस्तार कहेवाय छे. १ प्रत्येक ग्रन्थना विधान प्रमाणे सिंहासननी उंचाई बेठी प्रतिमानी ५६ भागनी उंचाईथी अडधी २८ भागनी कही छे, ४ भागनी कणी, २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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