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રવર
[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे अर्धी पहोली होय छे, पाटलीने शिल्पशास्त्रकारो 'मर्कटी, मंडूकी' इत्यादि नामोथी ओलखावे छे. अधिकांश ग्रंथकारोनी मान्यता पाटलीना विषयमा उपर जणाव्या प्रमाणे छे, छतां एने अंगे पण मतभेद तो छे ज. ए विषयमा अपराजितपृच्छानुं विधान नीचे प्रमाणे छ
मण्डूकी तस्य कर्तव्या, अईचन्द्राकृतिस्तथा। पृथु दण्डसप्तगुणोक्ता, हस्ताद्वा पंचकोद्भवा ॥९॥ षड्गुणा च द्वादशान्ता, शेषा पंचगुणोच्यते । भागेन च सविस्तारा, कर्तव्या सर्वकामदा ॥१०॥ अर्डचन्द्राकृतिश्चैव, पक्षे कुर्यात् गगारकम् । वंशोधं कलशं चैव, पक्षे घण्टाप्रलंबनम् ॥११॥
भाण्टी-ते दण्डनी पाटली अर्धचन्द्र आकारे बनाववी अने तेनी लंबाई दण्डनी जाडाइथी सातगुणी करवी. आ मान १ थी ५ हाथ सुधीना दण्डनी पाटलीनुं छे; ६ थी १२ हाथ मुधीना दण्डनी पाटली दण्डनी जाडाइथी छ गुणी अने ते उपरान्तना दण्डनी पाटली दण्डनी जाडाइथी पांच गुणी लंबी करवी जोइए. पाटली पोतानी लंबाइथी अर्ध भागे विस्तृत करवी, तेनो वचलो भाग अर्ध चन्द्राकारे करवो, अने बन्ने बाजुमां गगारा बनाववा; वाशना उपरना भागे कलश अने पाटलोना बन्ने छेडाओ उपर घंटडियो लटकाववी. . अपराजितपृच्छामां दंड उपर कलश बनाववानुं विधान तो कयु, पण कलशनी उंचाईना संबन्धमां कोई जणाव्यु नथी, पण बीजा ग्रंथोमां आ संबन्धमां नीचे प्रमाणे उल्लेख मले छे. ___ कलशं कारयेत्तस्याः पंचमांशेन दैर्ध्यतः।
भा०टी०-पाटलीना पंचमांश जेटलो लंबो ते ऊपर कलश कराववो.
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