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[ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे पण ध्वजदंडनु स्थान उत्तमादि दंडोने माटे करवानुं विधान मानेलं छे.
(११) शिल्पविषयक केटलाक अप्रसिद्ध नियमो
आजना समयमां मारवाड गुजरात देशीय प्रासाद शिल्पियोमां प्रचलित नियमो तो प्रासाद लक्षणमां आवी ज गया छे, पण केटलाक अप्रसिद्ध नियमो जे लक्षणसमुच्चादि ग्रन्थोमां प्रतिपादन करेला छे तेमांथी केटलाक अहींयां आपीये छीये ए वांचीने शिल्पी गण जाणी शकशे के तेओ जे कइ जाणे छे एटलं ज शिल्प नथी पण घणु छे, अमारो आशय ए नथी के बधाये आ नया नियमोने अनुसरे, पण आ नियमो उपरथी शिल्पीगणे एटलो तो धडो लेवो ज जोइये के प्राचीन प्रासादोमां ज्यां क्याइ पण आ नियमो प्रमाणे कार्य थयेलं होय तेने अशुद्ध कहीने पोतानी विद्वत्तानुं प्रदर्शन न करावे पण “ बहुरत्ना वसुन्धरा" ए वचनने प्रमाण मानीने नQ नवू जाणवा अने शीखवानो उद्यम करे.
कूर्म शिलामान-लक्षणममुच्चये"गर्भकर्णायतं मूत्रं, कृत्वा भागचतुष्टयम् । तदेकांशप्रमाणेन, मध्ये कूर्मशिलास्थितिः ।। तन्मध्ये स्थापयेल्लिंग, मध्यं नैव परित्यजेत् । मध्यस्थं हन्ति कर्तारं, ब्रह्मवेधान्न संशयः ।। तस्मादीशं समाश्रित्य तत्स्थितिः सूत्रमानतः।"
अर्थात्- गभारामां बे कोणो बच्चे सूत्र लंबावीने तेना ४ भाग करवा तेवा १ भाग माननी कूर्मशिला मध्यभागमा स्थापवी अने बराबर कूर्मशिलाना मध्यभागे शिवालग स्थापg पण शिला मध्यनो त्याग करवो नहिं गर्भ मध्यमां स्थित लिंग ब्रह्मवेध थवाथी
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