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परिच्छेद ११, ध्वजदण्ड लक्षणदण्डश्चैत्यध्वजाधार-स्तस्माल्लक्षणवेदिना । दण्डः सुलक्षणः कार्यः, समानो ग्रन्थि-पर्वभिः ॥३०॥
भाल्टी-दंड चैत्यनी ध्वजानो आधार छ, एटले लक्षणना जाणनारे दण्डने गांठो अने पर्वोना शास्त्रोक्तमान सहित लाक्षणिक बनाववो.
दण्डनी लंबाईना प्रकारो(१) प्रासादनी खरशिलाथी कलशना अग्रभाग पर्यन्तनी उंचाईना एक
तृतीयांश जेटली ध्वजदण्डनी लंबाई करवी ते दण्डनुं ज्येष्ठमान समजवू. जेष्ठमानने अष्टमांश हीन करवाथी मध्यममान अने चतुर्थांश हीन करवाथी कनिष्ठमाननो दण्ड थाय छे कोई ग्रंथकारे षडंशहीनने कनिष्ठमान कह्यो छे. प्रासादना विस्तार (व्यास) बरोबर दण्ड होय तेने पण ज्येष्ठमान दण्ड कहे छ, आ ज्येष्ठमानमां दशमांश हीन करवाथी मध्यम मान अने पंचमांश हीन होय ते दण्ड कनिष्ठमाननो
गणाय छे. (३) प्रासादनी मूल रेखा परिमित दण्ड होय ते दण्ड पण कनिष्ठ
माननो गणाय छे. आ कनिष्ठमानमांथी द्वादशांश ओछो करवाथी 'कनिष्ठ मध्यम' अने षडंश हीन करवाथी कनिष्ठ कनिष्ठ 'माननो दण्ड गणाय छे.
कया मापना प्रासादने माटे कया मापनो दण्ड होवो जोइए ? ए विषयमा घणा शिल्पिओ विचार करता नथी, अने "प्रासाद व्यास मानेन" इत्यादि श्लोकोक्त मापना ज दण्डो करावे छे; पण
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