SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिच्छेद १० कलश-लक्षणप्रासादमस्तके मौलि-रूपः कुम्भो निगद्यते । तस्मात् सल्लक्षणं कुम्भं, कारयेद् विधिवित्तमः ॥२९॥ भा०टी०-कलश प्रासादना मस्तक उपर मुकुट रूप कहेवाय छे माटे विधिना जाणनारे कलश उत्तम लक्षणान्वित बनाववो. देहराना शिखर उपरना कलशनुं लक्षण अने परिमाण शिल्प शास्त्रोमां देहराना मान अने जानिने अनुसारे भिन्न भिन्न प्रकारचं कहेलुं छे. १-नागर, लतिन, सांधार, मिश्रक, विमाननागर, विमानपुष्पक अने धातुज, रत्नज, दारुज, रथारुह आदि, आ जातिना प्रासादोना कलशोनां परिमाण नीचे मुजब ३ प्रकारनां होय छे. (१) नागरादिनो प्रासादना विस्तारथी आठमा भागनो कलशनो विस्तार मध्य भागे करवो अने रत्ननादिनो एथी सवायो करवो, कलशनुं आ जघन्यमान गणाय छे. आमां सोलमो भाग उमेरवाथी तेनुं उत्तम मान अने बत्रीसमो भाग उमेरवाथी मध्यम मान थाय छे. (२) प्रासादनी मूलरेखाथी पांचमाभाग जेटलं पण कलशन मान होय छे; आ कलशनां माननो बीजो प्रकार छ जे बृहत्प्रासादोनां कलशोने माटे उपयोगी होय छे. (३) आंबलसारानो विस्तारना ४ भाग करी तेना १ भागने सवायो करतां जे मान आवे तेना बरोबर पण कलशनो विस्तार थाय छे. (४) वराट, द्राविड, भूमज, विमानोद्भव अने सर्व प्रकारना वलभीप्रासादोना कलशोनुं विस्तार मान प्रासादना व्यासना छट्ठा भाग जेटलु होय छे, आ मध्यम मान छे आने स्वषष्ठांश युक्त कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy