________________
प्रासाद-लक्षणम् ] क्षुरकं कुंभकलशौ, कपोतं जंघया सह । प्रासादस्यानुरूपेण, मण्डपेष्वपि कारयेत् ॥६२०॥
भा०टी०-खुरो, कुंभो, कलशो, केवाल अने जांघ; आ थरो गूढ मण्डपोमां पण प्रासादना जेवा करवा.
परिच्छेदनो उपसंहारप्रासाद-वास्तुने अंगे लखवानुं घणुं छे, अमोए समुद्रमांथी छांट जेटलं ज अत्र लख्यु छे, एक परिच्छेद के प्रकरणमा आथी अधिक लखवाने अवकाश पण न होय ए देखीती वात छे तेथी प्रासाद-लक्षण अहीं ज पूर्ण करीये छीये.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org