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________________ प्रासाद-लक्षणम् ] २३३ हाथना प्रासादना स्तंभनी जाडाई ९ आंगलनी करवी. ते पछी ४ थी १२ हाथ पर्यन्तना कोइ पण मापना प्रासादना स्तंभनी जाडाईमा प्रतिहस्त २-२ आंगलनी वृद्धि करवी, जेम के ४ हाथना प्रासादे स्तंभ ११ आंगलनो, ५ हाथना प्रासादे स्तंभ १३ आंगलनो करवो. इत्यादि; १२ पछी १३ थी १६ हाथ सुधीना प्रासादना स्तंभनी जाडाइमां हाथ प्रति १। आंगलनी वृद्धि अने १७ थी ४० हाथ सुधीना प्रासादना स्तंभनी जाडाइमां प्रतिहस्त १-१ आंगलनी वृद्धि करवी; ते पछीना ४१ थी ५० हाथ सुधीमा प्रतिहस्ते तंभनो विस्तार ०-०। (पोणो) आंगल वधारवो. स्तंभनी जातिओरुचकश्चतुरस्रः, स्यादष्टास्सिर्वज्र उच्यते । द्विवज्रः षोडशास्रिश्च, प्रतीतो द्विगुणस्ततः ।।५०५।। मध्यप्रदेशे यः स्तंभो, वृत्तो वृत्तः प्रकीर्तितः । भाण्टी -चोरस स्तंभ 'रुचक', अष्टकोण 'वज्र'. पोडशकोण 'द्विवन' अने बत्रीश कोणवालो स्तंभ 'प्रतीत' एवा नामे ओलखाय छे, जे स्तंभ मध्यभागमा गोल होय ते 'वृत्त' स्तंभ कहेवायो छे. __ मंडप-भद्र-विस्तारस्तंभसूत्रस्य मार्गेण, क्षणो मण्डपमध्यगः ॥५९६।। मूलप्रासादमार्गेण, कार्या वा भद्रविस्तृतिः । शेषाः क्षणा विधातव्याः, समसंख्याःक्षणैर्धरैः ॥५९७।। भा०टी०-मंडपनो मध्य क्षण स्तंभसूत्रानुसारे विस्तृत करवो, अथवा तो मूलप्रासादना माने मंडपना भद्रना क्षणनो विस्तार करवो, बीजाक्षणो-क्षणो अने स्तंभोवडे समसंख्याक करवा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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