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________________ प्रासाद-लक्षणम् ] २१९ युग्मं च दापयेत्तत्र, वेधदोषविवर्जितम् । ॥५४७॥ क्षणमध्येषु सर्वेषु, स्तंभमेकं न दापयेत् । युग्माकारमिमंदयाद् , मूलगर्भ न पीडयेत् ॥५४८॥ मण्डपानां समस्तानां, लक्षणं कथ्यतेऽधुना। गति स्तंभं च भित्तिंच, विभक्ति भागसंख्यया ।।५४९॥ भाण्टी-मुख मंडपनो संघाट (पीठ) समतल होय अथवा विषम तल होय, स्तंभ, पाट आदि समतल होय के विषमतल-जो बच्चे भीतनो आंतरो होय तो दोष गणातो नथी. क्षणोमां एक वधारयु नहि, कदापि वधारवानी आवश्यक्ता होय तो वेध टालीने समानान्तरे बे वधारवां. एज रीते एक स्तंभ कदापि न देवो. पण २-४-६ आम बेकी रुपे स्तंभो देवो, गर्भवेध न थाय ए वातनुं ध्यान राखq. ___ मंडपोना संबन्धमा सामान्य निरूपण करी सर्व मंडपोर्नु लक्षण, मंडपोनी रचना विधि, स्तभर्नु लक्षण, भींतनुं स्वरूप, भाग संख्यापूर्वक दल विभक्ति, आदि विषयोनुं स्वरूप हवे पछीना सूत्रमा पुष्पकादि २७ मंडपोअपराजित पृच्छाना १८६ मा सूत्रमा आ मंडपोनां नाम अने रचना विधि बतावेल छे, आ बधा गूढ मंडपो छे एटले भद्र, उपभद्र तेमज तेमनो निर्गम आदि पण जाणको आवश्यक तो छेज, छतां आ सूत्रमा ए विषयर्नु निरूपण नथी. आथी समरांगणसूत्रधार उपरथी आ प्रकारनी आवश्यक वातोनी चर्चा करी पछी मंडपोर्नु निरूपण करीशु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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