SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० [कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे तदूर्वे कलशं कुर्यात् , सुरूपलक्षणान्वितम् । निकुञ्चवलिके कार्ये, वंशाधारस्य बाह्यतः ॥४८२॥ वंशबन्धास्तु कर्तव्या, हस्ते हस्ते तथा पुनः । हस्ते सपादे सार्धे वा, द्विहस्ते वाऽप्यथोचिते ॥४८३॥ भाण्टी-पत्थरना प्रासादमां कलशस्थाने खेरनो 'इन्द्रकील' नीचे लोसीने कलश पर्यन्त उंचो राखवो. इन्द्रकील नीचे चोरस, मध्यमा अष्टात्र अने उपर गोल करवो, मजबूत, खाडा-खांचा वगरनो, नकर अने प्रमाणयुक्त करवो. ध्वजावती स्तंभिकाने पण नीचेथी अनुक्रमे चतुरस्र, अष्टास्त्र, षोडशास्त्र करी उपर गोल अने अन्त भागमां पाछी चोरस करवी, तेना उपर सुन्दर अने सुलक्षणवालो कलश करवो. थांभलीने दवा वीने स्थिर राखवा माटे खाडानी बहार बे वलिओ (मजबूत लाकडिओ) टेका रूपे उभी करवी, आम स्तंभिकाने मजबूत स्थिर करी पछी तेनी साथे ध्वजदंडने मजबूत बंधोवडे बांधवो, आ बन्धो हाथे हाथे, सवा सवा हाथे, दोढ दोढ हाथे, अथवा बेबे हाथे दंडनी लंबाईनो विचार करीने देवा, बन्धो बच्चे बे हाथथी अधिक अंतर न राखq. जिनेन्द्र प्रासाद पश्चकपद्मरागो विशालाख्यो, विभवो रत्नसंभवः । लक्ष्मीकोटर इत्येवं, पश्चैते तु जिनालयाः ४८४॥ भाटी०-१ पद्मराग, २ विशाल, ३ विभव, ४ रत्नसंभव अने ५ लक्ष्मी कोटर; ए पांच जिनप्रासादोनां नामो छे. तलविभक्ति २२ भागकर्णीनन्दी-प्रतिरथः, पूर्ववञ्च सुसंस्थितः। नन्दिका भागनिष्कासा, द्विभागा पार्श्वक्षोभणा ॥४८५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy