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________________ [ कल्याण - कलिका - प्रथमखण्डे भा०टी० - दण्डनी पाटली अर्धचन्द्राकारनी करवी, तेनुं मान १ थी ५ हाथ सुधीना दंडे विस्तारथी ७ गणी, ६ थी १२ हाथ पर्यन्तना दंडे विस्तारथी ६ गणी अने ते उपरना मानवाला दंडे विस्तारथी ५ गणी लांबी करवी तथा विस्तारमां लंबाईना ३ जा भागनी करवी, उक्तमाने लांबी-पहोली पाटली सर्व इच्छाओने पूर्ण करनारी होय छे. १९८ पाटलीनुं स्वरूप अर्धचन्द्राकृतेश्चैव, पक्षे कुर्याद् गगारकम् । वंशो कलशं चैव, पक्षे घण्टा प्रलम्बनम् ||४७२ || चामरैर्भूषितं कुर्याद्, घंटापक्षे विचक्षणः । पताका पापहारी च, शत्रुपक्षक्षयंकरी ||४७३ ॥ भा०टी० - पाटलीना मध्यभागे अर्धचन्द्राकार करी तेनी बेने बाजुमां गगारा करवा, पाटलीना मध्यभागे दंड उपर कलश करवो, अने बने तरफ घंटडिओ लटकाववी, बुद्धिमाने घंटडीओनी तरफना भागोने चामरो वडे शुशोभित करवा, अने पाटली उपर पापने हरनारी तथा शत्रुना पक्षनो नाश करनारी पताका-ध्वजा चढाववी. दण्ड शानो बनाववो ? वंशमयस्तु कर्तव्यः, सारदारुसमन्वितः । निर्व्रणः सुदृढः कार्यः (दण्डः), प्राञ्जलो दोषवर्जितः || ४७४ || समग्रन्धिर्विधातव्यो, विषमैः पर्वभिर्युतः । भा०टी० - दंड वांशनो करवो अथवा श्रेष्ठ जातिनी लाकडीनो करवो. ते दंड घा वागेलो, पोचो, के वांको चुको न होय एवो निर्दोष, समगांठोवालो अने विषम पर्वोवालो बनाववो जोईए. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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