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प्रासाद-लक्षणम् ] हिसाबे करवू, ५० हाथ सुधी प्रतिहस्ते अर्ध अर्ध आंगलनी वृद्धिए प्रासाद पुरुषतुं निर्माण करवू. आम प्रमाणोपेत पुरुष करवो के जेथी सर्व इष्ट फल देनारोथाय, सुवर्ण पुरुषने सोनाना, रूपाना, त्रांबाना, अथवा त्रणे धातुओना बनेला अने घृतथी भरेला कलश उपर स्थापित करवो.
पलंगना ४ पायाओ नीचे उपर पोतपोताना लखेला नामो वालां ढांकणां वडे मुद्रित करीने सुवर्णादि रत्नगर्मित ४ निधि कलशो स्थापन करवा. __ आ प्रमाणे वास्तुशास्त्रमा कहेल विधिथी प्रासादना जीवस्थानमा जे. जीवनी (पुरुषनी ) स्थापना करे छे तेने सृष्टिना अंतपर्यन्त दुःख-दौर्भाग्य प्राप्त थतुं नथी.
कलश देवागारेषु सर्वेषु, नृपाणां भवने तथा । संस्थाप्यो दिव्यः कलशो, विश्वकर्मवचो यथा ॥४३९॥ शैलजे शैलजं कुर्याद् , दारुजे दारुजं तथा । धातुजे धातुजं चैव-चैष्टिके चैष्टिकं शुभम् ॥४४०॥ चित्रे चित्रो विधातव्यो, हेमजः सर्वकामदः । श्रेष्ठौ सर्वत्र श्रेष्ठानां, सुवर्णकलशध्वजौ ॥४४१॥
भाटीसर्व देवमंदिरो उपर अने राजमहेलो उपर दिव्य कलश स्थापन करवो एवं विश्वकर्मानुं वचन छे, पत्थरना प्रासाद उपर पत्थरनो, काष्ठना मंदिर उपर काष्ठनो, धातुना प्रासादे धातुनो अने इंटना प्रासादे इंटनो कलश शुभ होय छे, चित्रविचित्र द्रव्यथी बनेल प्रासाद उपर तेवा चित्र पदार्थनो बनेलो कलश करवो. अने सुवर्णनो कलश सर्वप्रकारना प्रासादो उपर चढाववो ते इच्छित फलदायक छ. सुवर्णनो कलश अने ध्वज सर्वत्र श्रेष्ठमां श्रेष्ठ छे.
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