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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे स्तंभाद्याश्चैव गर्भाद्याः, प्रासादभित्तिमानतः । चतुर्विधा भवेद्रेखा, विमाने चैव भूमिजे ॥४१९॥ वराटे द्राविडे कार्या छन्दे विमाननागरे । विमान-पुष्यके तद्वद्, वल्लभीष्वपि कामदा ॥४२०॥ लाञ्छना-सूत्रयोगेन, रेखा सूत्रद्वयाङ्किता। वेणिकोशोद्भवा रेखा, कलाभेदक्रमादपि ॥४२१॥ नागरे लतिने कार्या, सान्धारेऽप्यथ मिश्रके। दारूजे च रथारोहे, प्रशस्ता सर्वकामदा ॥४२२॥ शिखान्ता वा भवेद्रेखा, घण्टान्ता चाप्यथोच्यते । स्कन्धान्ता च तथा प्रोक्ता, अन्यथा दोषकारणम् ॥४२३॥
भा०टी०-नागर, लतिन, सांधार अने मिश्रक प्रासादाना शिखरोमा नागरी रेखा प्रयोग करवो, नागरी रेखा चिह्नमाटे तैयार करेला सूत्रना योगथी उत्पन्न थाय छे.
विमान प्रासाद तथा भूमिज प्रासादनी रेखा गर्भमर्यादाए विस्तृत करवानुं कथन छे. तथा वराट अने द्राविड जातिना प्रासादोमां रेखा विस्तारगर्भथी कंइक बाहर राखवी श्रेष्ठ छे. ___ स्तंभ मर्यादाए, गर्भ मर्यादाए भित्ति मर्यादाए, भित्ति मर्यादाए अने उक्त गर्भनी बाहरनी मर्यादाए; आम विस्तारमा रेखा च्यार प्रकारनी होय छे. आ च्यारे प्रकारनी रेखा विमान अने भूमिज प्रासादमा लेवाय छे, वली वराट, द्राविड, विमाननागर, विमानपुष्यक अने वल्लभी; आ बधी जातिना प्रासादोमां पूर्वोक्त च्यारप्रकारनी रेखाओ यथायोग्य उपयोगमा लेवी शुभ फलदायक छ..
नागर, लतिन, सांधार, मिश्रक, दारुज (सिंहावलोकन ) अने रथारोह; आ सर्व प्रासादोमां वेणिकोशना योगथी लाञ्छना सूत्रद्वयवडे
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