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प्रासाद - लक्षणम् ]
(५) आज काल प्रचलित देवता पदस्थानोप्रासादगर्भस्य दले विधेये, द्वाराग्रखण्डं परिवर्ज नियम् । अन्ये दले पञ्चविभागभक्ते, तस्मिन्विधेयानि निजासनानि ॥ ३३७ ॥ यक्षादयश्च प्रथमे विभागे, द्वितीयभागेऽखिलदेवताश्च । ब्रह्मा च विष्णुश्च जिनस्तृतीये, चतुर्थभागादधिके हरश्च ॥ ॥ ३३८ ॥
भा०टी० - गर्भगृहना २ भाग करी द्वार तरफनो १ भाग छोडी देवो, बीजा भागना ५ भागो करी तेम देवताओनां आसनो निश्चित करवां. ( भींत तरफथी गणतां ) पहेला भागमां यक्ष आदि पुरुषदेवोनुं, २जा भागमां सर्व देवीओनं, ३जा भागमां ब्रह्मा विष्णु तथा जिननुं, अने ४था भागनी बहार शिवनुं आसन स्थापन कर. दृष्टिस्थान
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जेम जुदा जुदा देवानां पदस्थानो गर्भगृहमां जुदां जुदां होय छे तेज प्रकारे द्वारमां देवानां दृष्टिस्थानो पण जुदां जुदां होय छे, उंबराथी उत्तरंग सुधीनी द्वारनी उंचाई मापीने तेना ६४ भागो करवा, आ ६४ भागो पैकीना नीचेथी ११३५७९ |११|१३|१५|१७|१९|२१|२३|
।२५।२७|२९|३१|३३|३५|३७|३९|४१ |४३|४५|१७|४९१५११५३ 1५५/५७/५९/६१।६३ : आ ३२ विषमभागो दृष्टिपदो छे, ज्यारे २ थी ६४ पर्यन्तना तमाम समभागो शून्य स्थानो छे, आ समपदोमां कोइ पण देवनी दृष्टि रखाती नथी, विषम पदो पैकीना १|३| ५।७।९।११।१३।१५।१७; आ नत्र पदोमां शिव तत्त्वोनो दृष्टिन्यास थाय छे, ए पछी १९।२१।२३ : आ पदोमां व्यक्ताव्यक्तादि पदोनी स्थापना करवी, ए पछी २५मां सधैं, २७ मां शेषशायी विष्णु, २९मां गरुड, ३१मां मातृकाओ, ३३मां यक्ष, ३५मां भृंगशुकर
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