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________________ प्रासाद-लक्षणम् ] जगतीनो आकार अने परिमाणआ जगतीनो छंद (आकार) एनी लंबाइ-पहोलाइ अने एनी उंचाइनु शास्त्रमा विस्तृत वर्णन थयेलुं छे. अपराजितपृच्छामां को छ के-- जगत्या लक्षणं वत्स, गणु वक्ष्यामि सांप्रतम् । सा चाऽमूढदिशाभागा, मनोज्ञा सर्वतः प्लवा ॥१९६॥ चतुरस्रा तथायता, वृत्ता वृत्तायता तथा। अष्टास्रा च तथा कार्या, प्रासादस्यानुरूपतः ॥१९॥ ज्येष्ठा कनिष्ठप्रासादे, मध्यमे मध्यसा तथा । ज्येष्ठे कनिष्ठा व्याख्याता, जगतीमानसंख्यया ॥१९८॥ कनिष्ठे भ्रमणी चैका, मध्यमे भ्रमणी-दयम् । ज्येष्ठे तिस्रो भ्रमण्यश्च, सांगोपांगिकसंख्यया ॥१९९।। प्रासादपृथुमानेन, द्विगुणा चोत्तमा तथा। मध्यमा चतुगुणा या,ऽधमा पञ्चगुणोच्यते ॥२०॥ भा०टी०-(विश्वकर्माजी कहे छ) हे पुत्र ! हवे जगतीन लक्षण कहुं छं, ते तुं सांभल. जगती अदिग्मूह, मनोहर अने सर्व दिशा तरफ जलवहनवाली जोइए; चोरस, लंबचोरस, गोल, लंबगोल अथवा अष्टास्त्र; जेवा छन्दनो प्रासाद दोय तेवा ज छन्दनी तेने अनुरूप जगतो करवी, कनिष्ठ प्रासादने ज्येष्ठ, मध्यम प्रासादने मध्यम तने ज्येष्ठ प्रासादने कनिष्ठमाननी जगती बनावी. कनिष्ठ प्रासादनी जगतीमां एक, मध्यम प्रासादनी जगतीमां बे अने ज्येष्ठमानना प्रासादनी जगतीमा सांगोपांग त्रण भ्रमणीओ करवी. उत्तममानना प्रासादने तेना विस्तारथी बे गुणी, मध्यममानना प्रासादने चार गुणी अने कनिष्ठमानना प्रासादने पांच गुणी जगती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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