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[ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे १ पदस्थापनामां, राजमहेलना प्रारंभमां, लक्ष्मीना भंडारना प्रारंभमां, देवनी आगे चोकी स्थापवामां अने विद्यारंभमां 'स्वस्तिक' नामक वास्तु पूजq.
२ दिक्षाना प्रसंगमां, यात्राना प्रारंभमां अने कन्याना लग्न प्रसंगे 'पुष्पक' वास्तुनी पूजा करवी.
३ वनयात्रामा (गृहनिमित्ते काष्ट लेवा जती वखते) 'नन्द' वास्तुनुं पूजन करवु शुभदायक छे.
४ लतिन अने रुचकादि प्रासादोना मंडपोमां घरोमां अने जगतीनी भूमिना आरंभमा 'षोडशपद ' वास्तुनुं पूजन करवू.
५. सूर्यना दक्षिणायन अने उत्तरायण थवाना समये, इन्द्रमहोत्सवना प्रारंभे, लक्ष्मी अने श्रीमाता आदिना यात्रोत्सव प्रसंगे अने दिक्षाओमां 'कुलतिलक' वास्तुनी पूजा करवी.
६ कोइ पण शुभ कामना तथा प्रयाण करवाना प्रसंगे 'सुभद्र' वास्तु पूजq वखाणाय छे.
७ सर्व कारना जीर्णोद्धारना समयमां ' मरीचिगण' नामर्नु वास्तु पूज
८ ग्राम नगर के खेडु नवं वसावतां, कूओ खोदावतां अने राजाओना अभिषेक प्रसंगे 'भद्रक ' वास्तुने पूजq.
९ सर्व प्रकारना घरोना आरंभ अने प्रवेशमां, गजशालाओमां अने अश्वशालाओभा 'कामद' वास्तु पूजवु.
१० अनेकविध प्रासादो ( देवमंदिरो) अनेकविध मंडपो अने जगती, लिंग, पीठ, अने राजप्रासादोनी प्रतिष्ठामा ‘भद्र' नामना वास्तुनुं पूजन करवू.
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