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________________ ७० [ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे तेने विद्वानोए 'प्राशय ' एवं नाम आपेलुं छे. वली ७ यवो वडे कल्पेला आंगळोना मध्यम हस्तनी शिल्पशास्त्रज्ञोए 'साधारण' एवी संज्ञा पाडी छे ' मात्रा' शब्दनो अर्थ 'थोडु' अने 'शय' शब्दनो अर्थ हस्त थाय छे आथी ६ यवना अंगुलोनो कनिष्ठ हस्त जे साधारण पण कहेवाय छे तेनुं नाम ' मात्राशय' पाडयुं छे. विभागायामविस्ताराः, खेट-ग्राम-पुरादिषु ॥७॥ प्रासाद-वेश्म-परिखा,-द्वार-रथ्या-सभादिषु । मार्गाश्च निर्गमाश्चैषां, सीम-क्षेत्रान्तराणि च ॥८॥ वनोपवनभागाश्च, देशान्तरविभक्तयः। योजन-क्रोश-गव्यूति, प्रमाणमपि चाध्वनः । प्राशयेन प्रमातव्याः, खातक्रकचराशयः ॥९॥ भा०टी०-ग्राम, नगर, खेडा आदिना विभागोनी लंबाइ पहोलाइ, प्रासाद, घर, खाइ, (परिखा) द्वार, शेरी, सभाभवनो, मार्गों अने निर्गमस्थानो आ बधानी सीमानां क्षेत्रान्तरो, वनो अने उपवनोना भागो, देशान्तरना विभागो, योजनो, कोशो, गाउओ अने मार्गोनुं प्रमाण, खात (खाडा) क्रकच (करवत ) अने राशिओ आ बधा 'प्राशयहस्त' वडे मापवा. तलोच्छ्यान् मूलपादान् , जलोद्देशानधः क्षितेः । तथा दोलाम्खुशस्त्रादि-पातमानविनिर्णयम् ॥१०॥ शैल-खात-निकेतानि, सुरङ्गमानमान्तरम् । साधारणेन वाटयध्व-मानं च परिकल्पयेत् ॥११॥ भा०टी०-तलनी ऊंचाइओ, मूलपाया, भूमिनीचेनां जलस्थानो हिंडाला (हिंचका ) जल, शस्त्रपातना प्रमाणनो निर्णय, पर्वत तोडीने बनावेल गुफागृहो, सुरंगनी अंदरनुं माप, वाडीनुं अने मार्गर्नु माप ए बधार्नु माप साधारण (मध्यम) हस्तवडे करवु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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