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________________ ટ [ कल्याण- कलिका - प्रथमान्ते मा प्रासादशिल्प घणुं प्राचीन छे. प्रासादोना नागर, द्राविड अने बेसर ए ऋण कुलो, नागर- लतिनादि १४ जातियो, ए जातियोमांथी प्रारंभमा ५-५ अने २५-२५ उत्पन्न थयेल प्रासादो अने अन्ते घणी स्वरी जातियोना मूल प्रासादोना विकासरूपे तलभेदथी उत्पन्न थयेल चारलाखथी पण अधिक प्रासादोनी संख्या रेखाभेदे उत्पन्न थती एथीये अधिक प्रासाद संख्या बतावे छे के ' प्रासादशिल्प ' ए कांइ बसो पांचसो वर्षोनी वस्तु नथी पण हजारो वर्षोथी चाली आवती ए लौकिक विद्या छे. रोमन शिल्प करतांये प्राचीन भारतवर्षं आ शिल्प भारतना प्राचीन तीर्थों तथा नगरोना खंडेरोमां दृष्टिगोचर थाय छे अने हजारो श्लोकोमा आनुं निरूपण करता संख्याबन्ध प्राचीन ग्रन्थो उपलब्ध थाय छे. मत्रमतं, काश्यपशिल्पम्, शिल्परत्नम्, अपराजित पृच्छा, प्रासादमण्डनम् आदि अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थो छपाइ पण गया है. विषय घणो गहन ने विशाल छे एटले एने सांगोपांग समजावा माटे एक ' प्रकरण ' अथवा ' निबन्ध ' कोइ रीते पर्याप्त मथी पण एक सारो जेवो ग्रन्थ ज आ विजयने समजावी शके. असो प्रस्तुत 'प्रासादलक्षण' मा मात्र तेज वातोनी चर्चा करशुं के जे मनाती कारीगरी उपरांत विधिकारो अने प्रतिष्ठाकारोने पण जाणानो आवश्यकता होय छे. जगती १ शिला २ पीठ ३ मंडोवरो ४ प्रासादोदय ५ शिखर ६ द्वार ७ दृष्टिस्थान ८ स्तंभ ९ गर्भगृह १० आसन ११ शुकनास १२ आमलसारी १३ कलश १४ अने मंड १५ आदि प्रसिद्ध अने उपयोगी प्रासादांगोनो परिचय करावी तेना अंगे थती भूलों दिग्दर्शन करावशुं के जेथी निरीक्षको भूलोना संघ उत्तरदायित्वपूर्ण पोतानो अभिप्राय आपी शके. आजै श्रासादोमां भूलो काढनारा अधिकांश अजाण होय छे अने वास्तविक भूलो न होबा छतां ए विषयमा कंह ने कह हांकी मारीने लोकोने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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