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मर्म
उपमर्म | रज्जुजनितचतुः
[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे निर्वाणकलिकोक्त ८१ पदवास्तुमंडलमां मर्मोपमर्मादिअंकविवरण अंक नाम | समजण संख्या वादि
महामर्म अष्टसूत्रसंपात ८ ! वर्ण्य मर्म षट्सूत्रसंपात
चतुःसूत्रसंपात उपमर्म त्रिसूत्रसंपात उपमर्म त्रिसूत्रसंपात
निर्दोष । सूत्रसंपात *आ उपमर्मोमां वास्तुविद्यामां कोणोमां आवेला ४ ने उपमर्मान्तक कह्या छे.
नोटः-आमां पंचसूत्रजनित मर्म बनता नथी. वास्तुपुरुषनां अंगप्रत्यंगो
जेम वंशरज्जुना मर्मों अने सूत्रोनो वेध वर्जित छे तेज प्रमाणे वास्तुभूमिमां वास्तुपुरुषना अंगप्रत्यंगोनो वेध पण वर्जवो जोइये, वास्तुपुरुपनो शयनप्रकार जाणवाथी ज तेनां अंगप्रत्यंगो जाणी शकाय तेम होवाथी प्रथम तेने जणावीये. वास्तुपुरुषना शयनप्रकारो
वास्तुपदो ३२ होवा छतां तेनां मुख्य भेदो बे छे. एक विषमपद अने बीजो समपद. १-९-२५-४९-८१-१२१-१६९-२२५ २८९-३६१-४४१-५२९-६२५-७२९-८४१-अने ९६१ पदना आ १६ विषमपक्ष्यास्तुओमां ईशाने मस्तक अने नैर्ऋत्यमा बन्ने पग राखीने वास्तुपुरुष- शयन थयेलुं छे. वायव्यमां अने आग्नेयकोणमा अनुक्रमे एना वामदक्षिण हाथोनी कोमिओ आवेली
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