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आचारदिनकर (खण्ड-३) 43 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान छंद - “महादयामयहृदः श्रीतीर्थंकरमातरः।
प्रसन्नाः सर्वसंघस्य वांछितं ददतां परम् ।।" तत्पश्चात् द्वितीय वलय में स्थित चौबीस तीर्थंकरों की माताओं का क्रमशः निम्न छंद एवं मंत्र से आह्वान, संनिधान एवं द्रव्य-पूजन करें -
मरूदेवीमाता के लिए - छंद - "इक्ष्वाकुभूमिसंभूता नाभिवामांगसंस्थिता।
जननी जगदीशस्य मरुदेवास्तु नः श्रिये ।।" मंत्र - “ॐ नमः श्रीमरुदैव्यै नाभिपत्नयै श्रीमदादिदेवजनन्यै विश्वहितायै करुणात्मिकायै आदिसिद्धायै भगवति श्रीमरुदेवि इह प्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ-आगच्छ इदमयं पाद्यं बलिं चरूं गृहाण-गृहाण संनिहिता भव स्वाहा, जलं गृहाण-गृहाण, गन्धं गृहाण-गृहाण, पुष्पं गृहाण-गृहाण, अक्षतान् गृहाण-गृहाण, फलानि गृहाण-गृहाण, मुद्रां गृहाण-गृहाण, धूपं गृहाण-गृहाण, दीपं गृहाण-गृहाण, नैवेद्यं गृहाण-गृहाण, सर्वोपचारान् गृहाण-गृहाण, शान्तिं कुरु-कुरु, तुष्टिं कुरु-कुरु, पुष्टिं कुरु-कुरु, ऋद्धिं कुरु-कुरु, वृद्धिं कुरु-कुरु, सर्वसमीहितानि कुरु-कुरु स्वाहा ।।"
विजयामाता की पूजा के लिए - छंद - “अयोध्यापुरसंसक्ता जिनशत्रनृपप्रिया।
विजया विजयं दद्याज्जिनपूजामहोत्सवे।।' मंत्र - “ॐ नमः श्री विजयायै श्री अजित स्वामिजनन्यै भगवति श्री विजये इह प्रति...... शेष पूर्ववत् बोलें।"
सेनामाता की पूजा के लिए - छंद - "श्रावस्तीरचितावास जितारिहृदयप्रिया।
सेना सेनां परां हन्यात्सदा दुष्टाष्टकर्मणाम् ।।" मंत्र - "ऊँ नमः श्री सेनायै श्री संभवस्वामिजनन्यै भगवति श्री सेने इह प्रति.... शेष पूर्ववत् बोलें।
सिद्धार्थामाता की पूजा के लिए - छंद - “विनीताकृतवासायै प्रियायै संवरस्य च।
नमः सर्वार्थसिद्ध्यर्थं सिद्धार्थायै निरन्तरम् ।।"
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