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आचारदिनकर (खण्ड-३) 21 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान कूपवापीस्वामिने अमृतांगकाय देवाय अमृतं देहि-देहि अमृतं झर-झर, अमृतं स्रावय-स्रावय नमस्ते स्वाहा गन्धं गृहाण-गृहाण, पुष्पं गृहाण-गृहाण, धूपं गृहाण-गृहाण, दीपं गृहाण-गृहाण, नैवेद्यं गृहाण-गृहाण, बलिं गृहाण-गृहाण, जलं देहि-देहि स्वाहा।"
तत्पश्चात् मण्डप के मध्य में वेदिका की रचना करें। वेदीस्थापन एवं वेदीप्रतिष्ठा की विधि विवाह-अधिकार में बताई गई है। वेदी के मध्य में चलबिम्ब की स्थापना करें और उसी प्रकार स्थिरबिम्ब को भी जलपट्ट (फलक) के ऊपर स्थापित करें। वेदिका के मध्य अन्य चल जिनबिम्ब को देववन्दन एवं प्रथमपूजा करने के लिए स्थापित करें। उसके पार्श्व में, अर्थात् चारों दिशाओं में श्वेत कलश के ऊपर बोए गए जौ के सकोरे रखें तथा घी, गुड़ सहित गेहूँ के आटे से निर्मित तथा केसरीसूत्र से लिपटे हुए मंगलदीपक चारों दिशाओं में एवं वेदिका के मध्यभाग में स्थापित करें वेदिका की स्थापना चैत्य के चौकोर मण्डपगृह में करें। वेदिका की आठ दिशाओं में दिक्पालों की स्थापना करें। दिक्पालों की स्थापना वेदिका के बाहर के भाग में करें। तत्पश्चात् लघुस्नात्र विधि के अनुसार संक्षिप्त पूजा
करें। पूर्व में बताए गए गुणों से युक्त स्नात्र करने वाले चार पुरुषों · को वहाँ बुलाएं। पूर्व में बताए गए गुणों से तथा कंकण से युक्त चार स्त्रियाँ कषायमांगल्यमूली, अष्टकवर्ग, शतमूली एवं सहस्रमूली आदि सर्व
औषधियों को पीसने का कार्य शुद्ध विधि से उत्सवसहित करें। पंचरत्न मूलिकादि को पीसकर पृथक् सकोरों में रखकर और उनके ऊपर दूसरे सकोरे को रखकर कौसुंभसूत्र से लपेटकर एवं उस पर नाम लिखकर रख दें। जिसके दोनों कुल विशुद्ध हों, जिसने स्नान किया हुआ हो तथा आभूषण एवं कंकण से युक्त हो, ऐसी कुंवारी कन्या से सुरमा, घृत, मधु, शर्करा (मधु से तैयार की हुई शक्कर) सहित नेत्रांजन को पिसवाएं और उसे चाँदी की कटोरी में रखकर शरावसंपुट में रखें तथा उस पर कौशेय-कंचुलिका रखें। तत्पश्चात् स्नात्रकर्ता अपने वर्ण के अनुसार जिनउपवीत, उत्तरीय या उत्तरासंग को धारण करके, जूड़ा बांधकर, शुद्ध वस्त्र धारण कर, उपवास का प्रत्याख्यान कर, कंकण और मुद्रिका से युक्त होकर (बिम्ब के) समीप ही रहे।
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