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आचारदिनकर (खण्ड-३) 2 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान प्रतिष्ठा १२. पितृमूर्ति-प्रतिष्ठा १३. यति (मुनि) मूर्ति-प्रतिष्ठा १४. ग्रह-प्रतिष्ठा १५. चतुर्निकाय देव-प्रतिष्ठा १६. गृह-प्रतिष्ठा १७. वापी आदि जलाशयों की प्रतिष्ठा १८. वृक्ष-प्रतिष्ठा १६. अट्टालिकादि भवन-प्रतिष्ठा २०. दुर्ग-प्रतिष्ठा एवं २१. भूमि आदि की अधिवासना-विधि को क्रमशः कहा गया है।
जिनबिम्ब-प्रतिष्ठा में पाषाण, काष्ठ, हाथीदाँत, धातु एवं लेप्य निर्मित (अर्थात् मिट्टी, चूने आदि का घोल तैयार कर उससे निर्मित) प्रतिमाओं, चाहे वे गृहचैत्य में तथा सामान्य चैत्य में प्रतिष्ठित करने हेतु बनाई गई हों, उन बिम्बों की प्रतिष्ठा-विधि को सम्मिलित किया गया है। चैत्य-प्रतिष्ठा में महाचैत्य, देवकुलिका, मण्डप, मण्डपिका, कोष्ठ आदि की प्रतिष्ठा अन्तर्निहित है। कलश-प्रतिष्ठा में सोने एवं मिट्टी के कलशों की प्रतिष्ठा अन्तर्निहित है। ध्वजप्रतिष्ठा-विधि में महाध्वजराज, ध्वजा, पताका आदि की प्रतिष्ठा भी सम्मिलित है। बिम्बपरिकरप्रतिष्ठा-विधि में जल, पट्टासन, तोरण आदि की प्रतिष्ठा अन्तर्निहित है। देवीप्रतिष्ठा-विधि में अम्बिका आदि सर्वदेवियों, गच्छदेवता, शासनदेवता, कुलदेवता आदि की प्रतिष्ठा-विधि सम्मिलित है। क्षेत्रपाल की प्रतिष्ठा-विधि में नगर में पूजे जाने वाले एवं देश में पूजे जाने वाले बटुकनाथ, हनुमान, नृसिंह आदि की प्रतिष्ठा-विधि अन्तर्निहित है। गणेश आदि देवों की प्रतिष्ठा में मानू धनादि की प्रतिष्ठा भी समाहित है। सिद्धमूर्ति-प्रतिष्ठा में पुण्डरीक, गणधर, गौतमस्वामी आदि जो भी सिद्ध पूर्व में हो गए हैं, उनकी प्रतिष्ठा की जाती है। देवतावसर-समवशरण की प्रतिष्ठा में अक्ष (कोड़ी) वलय के स्थापनाचार्य, पंचपरमेष्ठी एवं समवशरण की प्रतिष्ठा भी अन्तर्निहित है। मंत्रपट्ट-प्रतिष्ठा में धातु उत्कीर्ण वस्त्र से निर्मित पट्ट की प्रतिष्ठा की जाती है। पितृमूर्ति-प्रतिष्ठा में (जिन) प्रासाद का निर्माण कराने या करने वाले, (चैत्य) गृह बनवाने वाले, फलक को स्थापित करने वाले एवं छोटा घड़ा जिसे (शिवादि) की मूर्ति पर टाँग देते हैं और जिसकी पेंदी के छेद से बराबर जल टपकता रहे - ऐसे उस गलछिब्बरिका से युक्त देवमूर्ति को स्थापित करने वाले पितृ की प्रतिष्ठा की जाती है। यतिमूर्ति-प्रतिष्ठा में आचार्य, उपाध्याय, साधु आदि की मूर्ति की या
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