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________________ बलि दें। नापूर्ण, तेल एवं कमोदकों से बलि बकुल से युक्त आचारदिनकर (खण्ड-३) 230 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान पितरों का मनोवांछित भोजन स्वगुरु एवं विप्रों को दान देने से वे संतुष्ट होते हैं। - यह पितृबलि का विधान है। अपनी-अपनी आम्नाय विशेष के अनुसार देवी की पूजा की जाती है। उसमें परिकर-विधि की भाँति ही बलि दें। देवी के पूजन में नाना प्रकार के पकवान, करम्भ, एवं सप्तधान्य बकुल से युक्त बलि दी जाती है। गणपति को ताजे मोदकों से बलि दें। क्षेत्रपाल के भेद के अनुसार तिलचूर्ण, तेल एवं करम्भ से या पुएं आदि सहित बकुल की बलि दें। नंद्यावर्त्त के वलय आदि के पूजन में नाना पकवानों एवं व्यंजनों से युक्त वलय के देवों की संख्या के अनुरूप उतनी संख्या में भिन्न-भिन्न पात्रों से बलि दें। इन्द्रों, ग्रहों, दिक्पालों, विद्यादेवियों, लोकान्तिक देवों, परमात्मा की माताओं, पंचपरमेष्ठी एवं चतुर्निकाय देवों को भिन्न-भिन्न पात्रों में बलि दें। शाकिनी, भूत, वेताल, ग्रह एवं योगिनियों की चौराहे पर तेल तथा विविध मुख वाले दीपक सहित मिश्रधान्य की बलि दें। इसी प्रकार भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस आदि के संतर्पण के लिए वैसी ही बलि, अर्थात् उसी प्रकार की सामग्री की बलि श्मशान में दें। निधि (खजाना) प्राप्त होने की दशा में निधिदेवता को भी उचित बलि दें। निधिदेवता के कथन के अभाव में निधि के समीप में सुलिप्त भूमि पर धनद (कुबेर) की स्थापना एवं पूजा करके निधि को ग्रहण करें। माताओं की पूजा के समय माताओं के पीछे गुरु, शुक्र, वत्स एवं कुलदेवता की स्थापना बुद्धिशालियों द्वारा की जानी चाहिए। विद्वान्जन जिनेश्वर, शिव एवं विष्णु को छोड़कर प्रायः सभी देवताओं का उनके वर्णानुसार गन्ध एवं पुष्पों से पूजा करें। इस प्रकार अर्हत्दर्शन में प्रतिष्ठा, शान्ति आदि में सर्वदेवों की पूर्व में जो-जो बलि बताई गई है, वह बलि दें। सर्वदेवों एवं सर्व देवियों की पूजा एवं हवन की सम्पूर्ण विधि अपनी गुरु-परम्परा के अनुसार करें। - यह बलि-विधान है। इस प्रकार वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर के उभयस्तम्भ में बलिदान-कीर्तन नामक यह छत्तीसवाँ उदय समाप्त होता है। +++++ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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