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आचारदिनकर (खण्ड-३)
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प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान
मुद्रा, ६ लोहड़िया रखें एवं तिल, यव एवं घी से हवन करें। बुध की पूजा के लिए गोरोचन से बुध के बिम्ब का आलेखन करें । ६ थाली में ६ पत्ते, ६ सुपारी, १ करूणाफल, ६ सकोरे नैवेद्य बलासत्कवाकुला, १ मुद्रा, ६ लोहड़िया एवं १ पहिरावणी रूप सुनहरी वस्त्र रखें तथा तिल, यव एवं घी से हवन करें। बृहस्पति की पूजा के लिए जिनेश्वर के आगे सोने या कुंकुम से बृहस्पति के बिम्ब का आलेखन करें । १ पीली यज्ञोपवीत, ६ थाली में ६ पत्ते, ६ सुपारी, १ काचाकपूरवालु, ३ सकोरे नैवेद्य घूघरीमाणा, १ पहिरावणी पीलावस्त्र, १ मुद्रा, ६ लोहड़िया, १ दाड़िमफल रखें एवं तिल, यव तथा घी से हवन करें। शुक्र की पूजा के लिए चांदी या कुंकुम से चंद्रप्रभु परमात्मा के आगे शुक्र के बिम्ब का आलेखन करें ६ थाली में ६ पत्ते, ६ सुपारी, १ काचाकपूरवालु, ६ केला (कदली फल ), १ पहिरावणी श्वेतवस्त्र ( जादरुखण्ड), १ मुद्रा, ६ लोहड़िया, मुहाली नैवेद्य रखें तथा तिल, यव एवं घी से हवन करें। शनि की पूजा के लिए कस्तूरी से राहु के बिम्ब का आलेखन करें । ६ थाली में पत्ते, सुपारी, १ काचाकपूरवालू, ६ नैवेद्य की वाटकी, १ मुद्रा, ६ लोहड़िया, १ पहिरावणी काला कपड़ा ( पाटुखण्ड ) एवं १ नारियल रखें तथा तिल, यव एवं घी से हवन करें। विल्कल - तारक की गमन - विधि बताते हैं जब ऊपर की ओर जाता है तब शुक्र अस्तगत की तरफ जाता है । जिस समय शुक्र दिखाई दे, उस समय खड़े होकर कुहूलाड़क ( कुल्हाड़ी / कुल्हड़ ) में जल और मिट्टी लेकर मार्ग में खोदकर डाल दें और उसके ऊपर से जाएं। जिस गाँव में स्थित हों, उस गाँव की अग्रभूमि पर जाकर जमीन पर अपने शरीर का घर्षण करें। फिर गाँव में रहने पर तारक-पीड़ा नहीं होती है । प्रकारान्तर से यह ग्रह - पूजा की विधि बताई गई है ।
अब लोकाचार के अनुसार ग्रह - शान्ति हेतु स्नान की विधि
बताते हैं
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विद्वानों द्वारा सूर्यग्रह की शान्ति के लिए मनःसिल, देवदारू, कुंकुम, विरणमूल, यष्टि (लता) मधु एवं कमल से वासित जल से स्नान करना हितकारी माना गया है। विषम स्थिति में लाल पुष्पों से
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