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आचारदिनकर (खण्ड-३) 216 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान "जिननामकृतोच्चारा देशनक्षत्रवर्णकैः ।
स्तुताः च पूजिता भक्त्या ग्रहाः सन्तु सुखावहाः ।।१।। जिननामाग्रतः स्थित्वा ग्रहाणां सुखहेतवे।
नमस्कारशतं भक्त्या जपेदष्टोत्तरं नरः ।।२।। एवं यथानाम कृताभिषेका आलेपनैबूंपनपूजनैः च फलैः च नैवेद्यवरैर्जिनानां नाम्ना ग्रहेन्द्राः शुभदा भवन्तु ।।३।। साधुभ्यो दीयते दानं महोत्साहो जिनालये।
चतुर्विधस्य संघस्य बहुमानेन पूजनम् ।।४।। भद्रबाहुरुवाचेदं पंचमः श्रुतकेवली।
विद्याप्रवादातः पूर्वात् ग्रह शान्ति विधिं शुभम् ।।५।।" सभी ग्रहों के मध्य में उक्त स्तुतिपूर्वक पुष्प, फल एवं नैवेद्य से पूजा करें। अन्यत्र सूर्यादि ग्रहों की पूजा के लिए क्रमशः निम्न पुष्प बताए गए हैं -
१. रक्त करवीर २. कुमुद ३. जासूद ४. चम्पक ५. शतपत्री ६. जाई ७. बकुल ८. कुन्द और ६. पंचवर्णपत्री। इसी प्रकार उनके लिए क्रमशः ये फल बताए हैं - १. द्राक्षा २. सुपारी ३. नारंगी ४. जम्बीर ५. बिजौरा ६. खजूर ७. नारियल ८. दाडिम ६. खारक १०. अखरोट (ज्ञातव्य है आचारदिनकर में ६ के स्थान पर १० फल उल्लेखित हैं।) नैवेद्य का क्रम इस प्रकार है - १. गुड़ौदन २. खीर ३. कसार ४. घृतपुर ५. दधिकरम्ब ६. भक्तघृत ७. किशर ८. माष ६. सावरथउ। सूर्य की शान्तिक के लिए घी, मधु एवं कमल से हवन करें। सभी ग्रहों की शान्ति में उनके मूलमंत्र से १०८ बार आहुति दें तथा सभी हवनों में पीपल, बरगद एवं प्लक्ष की समिधाएँ काम में लें। चावल, श्वेतवस्त्र एवं अश्व का दान करें। चन्द्र की शान्ति के लिए घी एवं सर्वौषधि का हवन करें तथा चावल, मोती एवं श्वेत वस्त्र का दान करें। मंगल की शान्ति के लिए घी, मधु एवं सर्व धातु का हवन करें तथा लाल वस्त्र एवं लाल अश्व का दान करें। बुध की शान्ति के लिए घी, मधु एवं प्रियंगु (केशर) का हवन करें तथा मरकत (पन्ना) एवं गाय का दान करें गुरु की शान्ति के लिए घी, मधु, जौ एवं तिल का हवन करें तथा स्वर्ण
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