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________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 206 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान से हवन करें। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र की शान्ति के लिए अज एक पाद अर्थात् सूर्य की पूजा करें, घी एवं मधु से हवन करें। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र की शान्ति के लिए अहिर्बुध्न्य (सूर्य) की पूजा कर घी एवं मधु से हवन करें। रेवतीनक्षत्र की शान्ति के लिए सूर्यदेव की पूजा कर घृत एवं मधुसहित कमलों से हवन करें। फिर निम्न मंत्र द्वारा नक्षत्रों की सामूहिक पूजा करें - “ॐ नमो अश्विन्यादिरेवतीपर्यन्तनक्षत्रेभ्यः सर्वनक्षत्राणि, सायुधानि, सवाहनानि, सपरिच्छदानि इह नक्षत्रशान्तिके आगच्छन्तु-आगच्छन्तु इदमयं आचमनीयं गृह्णन्तु-गृह्णन्तु सन्निहितानि भवन्तु स्वाहा-स्वाहा, जलं गृह्णन्तु-गृह्णन्तु गन्धं अक्षतान् फलानि मुद्रां पुष्पं धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृह्णन्तु-गृहणन्तु शान्तिं कुर्वन्तु-कुर्वन्तु तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुर्वन्तु-कुर्वन्तु सर्वसमीहितानि यच्छन्तु-यच्छन्तु स्वाहा।" - यह नक्षत्रों की सामूहिक पूजा हुई। तत्पश्चात् नक्षत्रपीठ पर दोष से रहित दस हाथ चौड़ा एवं अट्ठाईस हाथ लम्बा वस्त्र ढकें। शान्तिककर्म कर लेने पर जिस नक्षत्र की शान्ति करनी हो, उसका उसी विधि से हवन करें। शेष नक्षत्रों के हवन एवं पूजन पूर्ववत् करें। कुछ लोग इस विधि से भिन्न भी नक्षत्रशान्तिककर्म की विधि बताते हैं। ___अब लोकाचार के अनुसार, स्नानादि द्वारा की जाने वाली नक्षत्र शान्ति की विधि बताते हैं - प्रथम नक्षत्र (अश्विनी) की शान्ति के लिए मदयन्ति, गन्ध, मदनफल, वच एवं मधु से वासित जल से स्नान करना शुभ कहा गया है। भरणीनक्षत्र की शान्ति के लिए सफेद सरसों, चीड़ का वृक्ष, एवं वच से वासित जल से स्नान करें। कृत्तिकानक्षत्र की शान्ति के लिए बरगद, सिरस एवं पीपल के पत्रों तथा गन्ध से वासित जल से स्नान करें। रोहिणीनक्षत्र की शान्ति के लिए बहुबीज से वासित जल से स्नान करें। मृगशीर्षनक्षत्र की शान्ति के लिए मोती एवं सोने से वासित जल से स्नान करें। आर्द्रानक्षत्र की शान्ति के लिए वच, अश्वगन्ध एवं प्रियंगु (केसर) के मिश्रित जल से स्नान करें। पुनर्वसुनक्षत्र की शान्ति के लिए गोबर, गोशाला की मिट्टी, श्वेत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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